बुद्ध को मानने वालो की उत्पति ब्रह्मा के मुख से हुई है!

 दीघनिकाय अग्गञ्जसुत्त पृष्ठ ६५५ 


 यस्स खो पनस्स, वासेट्ठ, तथागते सध्दा निविट्ठा मूलजाता पतिट्ठिता दव्हा असंहारिया समणेन वा ब्राह्मणेन वा देवेन वा मारेन वा ब्रह्मुना वा केनाचि वा लोकस्मिं,तस्सेतं कल्लं वचनाय-'भगवतोम्हि पुत्तो ओरसो मुखतो जातो धम्मजो धम्मनिम्मितो धम्मदायाद'ति।तं किस्स हेतु?तथागतस्स हेतं वासेट्ठ अधिवचनं 'धम्मकायो' इति पि,'धम्मभूतो' इति पि 'ब्रह्मभूतो'इति पि।



जो बुद्ध पर आस्था रखता है,अगर वह कहे की वह ब्रह्मा अर्थात बुद्ध के मुख से पैदा हुवा है तो यह मानने योग्य है।यहां स्पष्ट किया गया है कि, जो तथागत अर्थात बुद्ध में श्रद्धानिविष्ट है उनमे जिसकी श्रद्धा जड़ जमा चुकी है , प्रतिष्ठित है,दृढ़ है,वह किसी भी ब्राह्मण या श्रमण देव, मा(ब्रह्मा) या संसार मे किसी के द्वारा डिगाया नहीं जा सकता! अतः ऐसे ही व्यक्ति का यह कहना उचित है कि मैं भगवान के मुख से उत्पन्न, धर्म से उतप्पन, धर्म निर्मित या धर्मादाय पुत्र हूँ | क्यो की धर्मकाय , ब्रम्हा ,ब्रह्मकाय, धर्मभूत , ब्रम्हाभूत आदि यह सब नाम तथागत अर्थात बुद्ध के ही है| भाव यह है कि बुद्ध ही ब्रम्हा है। और बुद्ध को मानने वाले बुद्ध के मुख से उतपन्न होने का दावा करे तो वह मानने योग्य है .  



मगर यही बात वेदों में हो जहां यह स्पष्ट किया गया है कि ब्रम्हा रूपी शरीर में समाज के चार उपांग कैसे समाहित है या उससे उत्पन्न है .. तो इसका मजाक बनाया जाएगा। 


इसी लिए मैं कहता हूं नवबौद्ध प्रोपेगेन्डिस्ट है ? यह जिस बात पर दुसरो पर हस्ते है स्वयं वही कल्पनाएं वही मान्यताएं इन्होंने खुद के लिए भी गढ़ रखी है।


और हाँ इसे मिलावट मत कहना ... क्यो की यह पाली है 😂😂🤣 पढ़नी आती हो तो पढ़ कर समझना !



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