क्या त्रिपिटकों में यज्ञों का उल्लेख प्रक्षिप्त है?

 यज्ञ वैदिक धर्म का एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। किन्तु कालांतर में यज्ञों में वाममार्ग के प्रभाव से पशु वध का प्रचलन आरम्भ हो गया था जिसका व्यास, जैमिनि आदि मनीषियों ने समय - समय पर खंडन किया था। बुद्ध ने भी अनेकों स्थलों पर हिंसामय यज्ञों का विरोध किया था और अंहिसामय यज्ञों का उपदेश किया था। किन्तु वैदिक धर्म को बौद्ध धम्म के पश्चात् बताने वाले नवभौंदू उन स्थलों को प्रक्षिप्त अथवा ब्राह्मणों की मिलावट बताने लग जाते हैं। 

यहां हम यज्ञ प्रकरण वाले संदर्भों की अक्षेपकता सिद्ध कर रहे हैं।

प्रथम पालि के व्याकरण से यज्ञों वाले प्रकरणों की अप्रक्षिप्ता सिद्ध करते हैं -


त्रिपिटकों में जो यज्ञ के उल्लेख है वो प्रक्षिप्त नही है बल्कि मूल बुद्ध वचन ही है। क्योंकि काच्चान ने अपने व्याकरण शास्त्र में प्रथम ही लिखा है कि ये व्याकरण बौद्ध वचनों को समझने के लिए बनाया गया है - जिनवचनयुत्तम्हि - 2.1.1

इसी के धातुमंजुषा में यज्ञ शब्द की धातु दी गई है - 

"यज देवच्चने दानसङ्गतीकरणेसु च" -1. 14 

यहां यज्ञ शब्द की धातु से स्पष्ट है कि त्रिपिटकों में भी यज्ञ के उल्लेख है और वे प्रक्षिप्त नही है। 

अत: बुद्ध वचन के व्याकरण में यज्ञ शब्द की धातु होने से त्रिपिटकों के यज्ञ वाले संदर्भ जैसे कुटदन्तुकादि सुत्त अक्षेपक सिद्ध होते हैं।


इसी तरह सांचि के स्तूप पर पूर्वी तोरण के दक्षिणी स्तम्भ पर प्रदर्शित चित्रावली से भी यज्ञों की त्रिपिटकों में अक्षेपकता सिद्ध होती है।

दक्षिणी तोरण पर विनय पिटक के महावग्गा के उरुवेला चमत्कार का दृश्यांकन है। इस चमत्कार पर एक पोस्ट पहले से ही हमारे ब्लाग पर है, जिसे इस लिंक से पढ सकते हैं -


https://aproudhindubloging.blogspot.com/2021/10/15-1-2-3-4.html?m=1

इस प्रकरण में बुद्ध द्वारा अग्निहोत्री काश्यप जाटिलों के अग्निहोत्र स्थल पर जा कर चमत्कार दिखाने तथा अग्निहोत्र के लिए चमत्कार द्वारा लकडियों को चीरने, अंगीठी जलाने आदि का उल्लेख है।

सांचि की चित्रावली इस तरह है -

 
इस चित्र में बुद्ध काश्यप जाटिलों के अग्नि मंदिर जाते हैं, वहां एक नाग मिलता है जिसे बुद्ध अग्नि स्तम्भ बनकर रोक रहे हैं। एक तरफ पर्णकुटिया से दूसरा जाटिल अग्निहोत्र कर रहा है।
दूसरा चित्र इस प्रकार है -

इस चित्र में जाटिल अग्निहोत्र के लिए लडकियां चीर रहे हैं, अग्निकुंड को पंखे की हवा से प्रज्वलित कर रहे हैं। अग्निहोत्र के पात्रों को तपा रहे हैं ये सब बाद में बुद्ध के चमत्कारों के कारण बहुत आसानी से हो रहा है।
सांचि के स्तूप पर विनय पिटक के उरुवेला चमत्कार के दृश्यों से स्पष्ट है कि ये प्रकरण प्राचीन समय से ही त्रिपिटकों में था तथा बौद्ध समुदाय में ये प्रकरण विशेष सम्मानीय भी था तभीतो इसका चित्रांकन सांचि जैसे स्तूप पर किया गया है।
इससे ज्ञात होता है कि बुद्ध के समय अग्निहोत्र होता था।
अत: अग्निहोत्र वाले संदर्भ त्रिपिटकों में प्राचीन है एवं उनको किसी ब्राह्मण ने क्षेपक नही किया है।
संदर्भित ग्रंथ एवं पुस्तकें -
1) धातुमंजुषा - काच्चानथेर
2) सांचि - भास्करनाथ मिश्र
3) विनय पिटक - राहुल सांकृत्यायन
4) sanchi gallery


Credits: nastikwad khandan blogspot 


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