वेद,महाभारत की पुष्टि और बौद्ध ग्रंथ




 बौद्ध मत का ग्रन्थ है ललित विस्तार सुत्त इसका तृतीय अध्याय है " कुलशुद्धि परिवर्त " अब जरा इस अध्याय का अनुशीलन हमारे इस लेख के द्वारा करिये |

इसी अध्याय के २ पंक्ति (गद्य भाग ) में लिखा है -
" ....... बारह वर्षो में बोद्धिसत्त्व माता की कोख में चले जायेंगे | तब शुद्धवासकायिक देवपुत्र जम्बू द्वीप में आकर दिव्य वर्ण छिपा कर ब्राह्मण बन ब्राह्मणों को वेद पढाते थे ... " - ललित विस्तार ३/२ (पृष्ठ ४९ )
अब देखिये फेसबुक के एक बौद्ध विद्वान का कहना है कि बौद्ध ग्रंथो में आये ब्रह्मा ,देव ,गन्धर्व ,यक्ष दुसरे लोको के निवासियों के नाम है तो यहा देव पुत्र वेद पढ़ा रहे है इससे स्पष्ट है कि दुसरे लोको में भी वेदों का अध्ययन होता है इसी कारण देव पुत्र पृथ्वी के जम्बूद्वीप में आकर वेद पढ़ा रहे है | साथ ही ये भी सिद्ध होता है कि वेद बुद्ध से पूर्व के है |
अब आगे आइये अक्सर भीमटे हमारे पौराणिक बंधुओ से पूछते है कि देवो के अवतार भारत में ही क्यों होते है ? अन्य देशो में क्यों नही ?
तो इसके लिए उन भीमटो को जरा इसी अध्याय का २५ वी पंक्ति (गद्य भाग ) देखनी चाहिए -
" बोधिसत्व जम्बूद्वीप के सीमाव्रती द्वीपों में उत्पन्न नही होते है ........................ किन्तु मध्यम जनपदों में अर्थात् भारत के मध्य देशो में ही होते है | " - ललित विस्तार ३/२५ (पृष्ठ ६० )
अब यहा भीमटो से भी यही प्रश्न होता है कि बुद्ध केवल भारत में ही क्यों जन्मते है या बनते है अन्य जगह क्यों नही क्योंकि यहा ललित विस्तार स्वयं उनके भारत में ही होने की बात कह रहा है |
अब चलो थोडा जातिवाद भी देखो -
" .... बोधिसत्व हीनकुलो में ,चांडाल कुलो में ,रथकार कुलो में ,निषाद कुलो में उत्पन्न नही होते है ,किन्तु दो ही कुलो ब्राह्मण कुल और क्षत्रिय कुलो में ही होते है ,जब लोक में ब्राह्मण लोग बढ़े चढ़े है तब ब्राहमण और जब क्षत्रिय तब क्षत्रियो में उत्पन्न होते है | " - ललितविस्तार ३/२६ (पृष्ठ ६०-६१ )
अब तो जातिवाद के कारण अवश्य ही नवबौद्ध मनुस्मृति समान इस ग्रन्थ को भी जलाएंगे ? और देखिये इससे स्पष्ट है कि नवबौद्ध कितनी भी विपश्ना आदि कर ले लेकिन बौद्ध पद्धवी नही पा सकते है क्योंकि वो तो ब्राह्मण और क्षत्रियो के ही पुत्रो के लिए आरक्षित है |
और इसमें भी जिसका पलड़ा भारी उसी कुल का बुद्ध बनेगा मतलब दादागिरी :D
अब देखिये बुद्ध कृष्ण जी और महाभारत के बाद में हुए वो भी इसी ग्रन्थ से प्रमाणित होता है |
" ...यह मथूरा नगरी ऋद्ध स्फीत , क्षेम , सुभिक्ष , बहुजनों तथा मनुष्यों से व्याप्त है | राजा सुबाहु की जो कंस के कुल का है , शूरसेन का स्वामी है , राजधानी है | " ....... वह राजा ....वंश परम्परा में उत्त्पन हुआ दस्युराजा है | " - ललितविस्तार ३/३२ (पृष्ठ ६४ )
यहा कंस का नाम स्पष्ट लिखा है जिसका वध कृष्ण जी ने किया इससे बुद्ध कृष्ण जी के बाद का सिद्ध होता है इसी में आगे कंस को दस्युराजा भी कहा है इससे स्पष्ट है कि आर्य दस्यु कोई नस्ल विशेष नही बल्कि गुणवाचक विशेषण के रूप में प्रयुक्त होते है |
अब आगे महाभारत के बुद्ध से प्राचीन होने का भी प्रमाण देखिये -
" हस्तिनापुर नगर यह राजा पांडव कुल की वंश परम्परा में उत्त्पन्न हुआ है " ......... कहा जाता है कि युधिष्ठिर धर्म का बेटा था , भीमसेन वायु का ,अर्जुन इंद्र का ,नकुल सहदेव अश्वनीकुमारो का " - ललितविस्तार ३/३३ (पृष्ठ ६४ )
यहा पांडव और पांड्वो के नाम और जिन जिन से वे उत्पन्न हुए बिलकुल महाभारत के अनुसार आया है इससे सिद्ध है कि बुद्ध से पूर्व महाभारत और कृष्ण ,पांडव होने की घोषणा यह ग्रन्थ कर देता है |
इस प्रकार ये अध्याय कई तरह की सूचनाये और तथ्य उजागर कर देता है तथा नवबौद्ध की कल्पनाओं और महाभारत को अर्वाचीन बताने की कुचेष्टा का भी प्रत्युत्तर दे देता है |
संदर्भित ग्रन्थ एवम् पुस्तके -
(१) ललित विस्तार - अनुवादित भिक्षु शान्तिरक्षित 

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