प्राचीन भारत विश्व गुरु,सोने की चिड़िया जिसने दुनिया को गिनती सिखायि। पूरे विश्व के शिक्षा के केंद्र नालंदा, ताक्षशीला से धनी भारत का गौरावनित इतिहास। लेकिन आज कल कुछ नव गिद्धों की नजर इस सुनहेरे इतिहास पर पड़ गई है। ये नव गिद्ध कथित तौर पर तो विज्ञान की बात करता है लेकिन आज तक कोई वेज्ञानीक पैदा नही कर पाया हे। इस समुदाय के अनुसार भारत का मूल धर्म यही हे ओर भारत का सारा विज्ञान इन्ही के बाप दादाओं का है जिसे ब्राह्मणों ने कॉपी कर लिया है। कुछ गपोदेवाज तो इससे भी आगे निकल कर ये भी बोलने लगे हे की सिंधू सभ्यता बौद्ध सभ्यता थी जबकि कथित बुद्ध तब तक पैदा ही नहीं हुए थे। खेर दावा करने को तो कोई कुछ भी दावा कर सकता है लेकिन उन्हे साबित करने के लिए फैक्ट्स या प्रमाण चाइए होते हे। इसीलिए आज हम प्रमाणो के साथ हिंदू और बौद्ध धर्म के इतिहास पर ५ फैक्ट्स रखेंगे। 

फैक्ट १:बौद्ध और हिंदू ग्रंथो के अनुसार पहले कौन आया??


हिंदू धर्म बौद्ध धर्म से प्राचीन हे इसके प्रमाण हमे स्वयं बौद्ध ग्रन्थ जेसे ललीत विस्तार, त्रि पीटक आदि से मिल जाते हे। आइए देखते है पहला प्रमाण ललित विस्तार तृतीय अध्याय से।

" ...यह मथूरा नगरी ऋद्ध स्फीत , क्षेम , सुभिक्ष , बहुजनों तथा मनुष्यों से व्याप्त है | राजा सुबाहु की जो कंस के कुल का है , शूरसेन का स्वामी है , राजधानी है | " ....... वह राजा ....वंश परम्परा में उत्त्पन हुआ दस्युराजा है | " - ललितविस्तार ३/३२ 


यहा कंस का नाम स्पष्ट लिखा है जिसका वध कृष्ण जी ने किया इससे बुद्ध कृष्ण जी के बाद का सिद्ध होता है 


अब आगे महाभारत के बुद्ध से प्राचीन होने का भी प्रमाण देखिये -

" हस्तिनापुर नगर यह राजा पांडव कुल की वंश परम्परा में उत्त्पन्न हुआ है " ......... कहा जाता है कि युधिष्ठिर धर्म का बेटा था , भीमसेन वायु का ,अर्जुन इंद्र का ,नकुल सहदेव अश्वनीकुमारो का " - ललितविस्तार ३/३३ 

अतः इन दोनो प्रमाणो की महाभारत की प्रमाणिकता बौद्ध ग्रंथो से ही सिद्ध होती है और ये भी सिद्ध होता है की बुद्ध महाभारत की बाद की है। 


अब देखिए इसके आगे वेदों की प्राचीनता। 

" ....... बारह वर्षो में बोद्धिसत्त्व माता की कोख में चले जायेंगे | तब शुद्धवासकायिक देवपुत्र जम्बू द्वीप में आकर दिव्य वर्ण छिपा कर ब्राह्मण बन ब्राह्मणों को वेद पढाते थे ... " - ललित विस्तार ३/२ 



अब देखिये फेसबुक के एक बौद्ध विद्वान का कहना है कि बौद्ध ग्रंथो में आये ब्रह्मा ,देव ,गन्धर्व ,यक्ष दुसरे लोको के निवासियों के नाम है तो यहा देव पुत्र वेद पढ़ा रहे है इससे स्पष्ट है कि दुसरे लोको में भी वेदों का अध्ययन होता है इसी कारण देव पुत्र पृथ्वी के जम्बूद्वीप में आकर वेद पढ़ा रहे है | साथ ही ये भी सिद्ध होता है कि वेद बुद्ध से पूर्व के है |


 अब यहां कुछ लोग बोल सकते हे की ललीत विस्तार तो मूल पाली त्रि पीटक का हिस्सा हे ही नही तो हम इसे क्यों माने। तो आइए वहा से भी वेद,यज्ञ आदि के बुद्ध पूर्व होने के प्रमाण देख लेते है। 

पहला प्रमाण दिघ निकाय अम्बाष्ट सुत से जहां ब्राह्मण अम्बाष्ट को तीन वेदों का ज्ञाता कहा गया हे। 



दूसरा प्रमाण सूत निपात ब्राह्मणधमिक सुत से जहा बुद्ध द्वारा यज्ञ का ज़िक्र है। 


विनाय पीटक 1.1.3 में बुद्ध द्वारा ब्रह्मसूत्र (जिसके रचयिता वेद व्यास जी हे) और वेदों का जिक्र हे। 



सेलसुत्त में शैल नामक ब्राह्मण का वर्णन है जो तीन सौ विद्यार्थियों को वेद पढ़ाता था:-



( सुत्तनिपात, सेलसुत्त)


निष्कर्ष- इतने सारे स्पष्ट प्रमाणों से सिद्ध है कि वेदादिक का अस्तित्व बौद्ध मत के बहुत पहले से था। यहां तक की बुद्ध जी ही वेदों को जानते थे। सभी प्रमाणों को प्रक्षेप कहना ही हास्यास्पद और दुराग्रह है। भीमटो के कुछ मूर्ख आकाओं को छोड़कर कोई भी बौद्ध विद्वान इनको प्रक्षेप नहीं कहेगा


फैक्ट २:किनकी मूर्तियां/प्रतीक चिह्न अधीक प्राचीन बुद्ध की या हिंदू देवि देवताओं की!?


मूर्तिया और प्रतीकों की प्राचीनता जानने के लिए हमे सिंधू घाटी सभ्यता की और जाना पड़ेगा जहा से हमें बड़े मात्रा में मूर्तिया मिलती है। १९४० में archeologist MS Vats को हरपा से ५००० साल पुराने तीन शिव लिंग मिले थे। जिसका संदर्भ प्रतिष्ठित आर्कियोलॉजिस्ट बीबी लाल की पुस्तक "The Rigvedic People" से है। अब कुछ लोग कहने लगेंगे की ये शिव लिंग नही पत्थर हे ये हे वोह हे तो उनके लिए बतादू की कालीबंगा के म्यूज़ियम में इसे शिव लिंग कह कर ही रखा गया है। अतः ये शिव लिंग ही हे और कुछ नही।



 इसके इलावा मोहनजोदर से भगवान पशुपतिनाथ का सील भी मिला हे। भारत सरकार को ऑफिशियल वेबसाइट में भी इसे पशुपतिनाथ सील ही कहा गया हे। 


https://indianculture.gov.in/museums/pashupati-seal


इन प्रमाणो से ये सिद्ध हे की हिंदू देवि देवताओं की मूर्तियां और प्रतीक चिह्न सिंधू सभ्यता से भी मिला हे जबकि वहा से बौद्ध सभ्यता का कुछ भी नही मिला हे। खेर जब बुद्ध पैदा ही नहीं हुआ तो मिलेगा केसे??


अब थोड़ा पीछे आते हे। शिकों पर देख लेते है किनका वजूद मिलता है और किनका नही। यहां एक सिक्का दिखा रहा हु। 


- O. N. S. Newsletter no. 222 page. 24 

यह सिक्का 400 ईसापूर्व से 200 ईसापूर्व के मध्य माना गया है अर्थात् यह मौर्यकालीन सिक्का है। इन पर बलराम का अंकन हल और मूसल सहित देखा जा सकता है। 



- O. N. S. Newsletter no. 222 page. 25 

ये सिक्का भी उपरोक्त सिक्के के समान ही है तथा मोर्य कालीन ही है।किंतु उपरोक्त सिक्के की तुलना में इसमें अंतर यह है कि इस सिक्के में बलराम के स्थान पर चक्रधारी भगवान श्री कृष्ण का अंकन है। इन दोनो सिक्कों के प्रमाण से इस मान्यता की भी पुष्टि होती है कि अन्य सिक्कों पर मिली हलधर आकृति भगवान बलराम ही है क्योंकि वैसे ही सिक्कों पर चक्रधर आकृतियों का मिलना श्रीकृष्ण का ही अंकन सिद्ध करती है। इतने प्राचीन सीको पर बुद्ध की प्रतिमा आज तक किसी को भी नहीं मिली है। सत्य तो ये हे की विश्व में बुद्ध की सबसे प्राचीन मूर्ति, चित्रण सब १०० इस्वी में कृषाण काल की हे। उससे पहले की ना कोई बुद्ध का कोई मूर्ति मिली है ना कोई सीको पर चित्रण मिलता है। 


मंदिरों की प्राचीनता -

मध्यप्रदेश के सिद्धि जिले से 10000 - 8000 ईसापूर्व प्राचीन एक देवी स्थल की प्राप्ति हुई है। इस स्थल पर कुछ चिह्न भी प्राप्त हुए हैं जो कि शाक्त हिंदू आज भी पूजन में प्रयोग करते हैं जैसे - चक्र, वर्ग, स्वस्तिक, त्रिकोण (शाक्त यंत्रों पर ये देखे जा सकते हैं) आदि।


इस प्रमाण का संदर्भ हमें बैल्जिम मूल के विद्वान कुनराल्ड एलस्ट की पुस्तक Who is a hindu? के गद्यांश 9.4 Tribal hindu kinship : common roots से प्राप्त होता है


फैक्ट ३: सिंधू घाटी के लोग वैदिक या बौद्ध??

हड़पा और मोहनजोदड़ो से मिले शिव लिंग और पशुपतिनाथ सील से ये साबित होता है की वहा के लोग शेव मत को मानने वाले थे। इसके इलावा वहा कुछ और भी ऐसे साक्ष मिले है जिससे प्रतीत होता है की वहा के लोग वैदिक या हिंदू थे।  


१) स्वस्तिक के प्रमाण।

हड़पन काल के कही नमूनों में से एक स्वस्तिक(सु- आस्तिक) भी है।

http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00routesdata/bce_500back/indusvalley/swastika/swastika.html


 वहा के लोगो के लिए इसकी क्या भूमिका थी ये कहा नही जा सकता परंतु वर्तमान समय के लिए ये शुव भाग्य का परिचायक है। अब भी विशेष कर गांव में इसका इस्तमाल शूव कार्य के लिए किया जाता है। 


२) हाथ जोडने की मुद्रा - हिंदू प्राचीनकाल से किसी को नमस्कार करते समय और स्तुति करते समय हाथ जोडते हैं। इस प्रकार नमस्कार की मुद्रा का प्रमाण, हमें हडप्पा की एक मृणशिल्प में प्राप्त होता है जिसे पुरातत्व विद बी. बी. लाल जी ने अनेकों लेखों में प्रस्तुत किया है। उनके ही एक व्याक्यान

"सरस्वती बह रही है" से हम निम्न चित्र प्रस्तुत कर रहे हैं, जो कि हडप्पा से प्राप्त है

३)सिंदूर - विवाह पश्चात् हिंदू महिलायें अपनी मांग में सिंदूर लगाती हैं। जिसे नवभौंदू नारीवादी पाखंड कहते हैं। इस सिंदूर लगी अनेकों मृणाकृतियां सिंधु सभ्यता के nausharo नामक स्थान से प्राप्त हुई हैं। जिसे डां. बी. बी. लाल जी ने अपने पुस्तक "सरस्वती बह रही है","The Rigvedic People" जो की ASI के copyright के साथ प्रकाशित है और जे एम केनोयर की पुस्तक "Ancient Cities of The Indus Valley Civilization"जो की Oxford University से प्रकाशित है में दिया है -

इस शिल्प में स्त्री आकृति के आभूषणों का रंग पीला है जो कि स्वर्ण आभूषणों को दर्शाता है तथा काले बालों के मध्य लाल रंग की रेखा का चित्रण है, जो कि सिंदूर को दर्शाती है। हाल ही में बामसेफी महिलाओं का विडियो सार्वजनिक हुआ था, जिसमें वे अन्य दूसरी महिलाओं से मंगलसूत्र और सिंदूर हटवा रही थी तथा सिंदूर व मंगलसूत्र को मनुवादी पाखंड भी बता रही थी। अत: नव बौद्धों के अनुसार भी सिंदूर मनुवादी व्यवस्था है, इसीलिए सिंधु सभ्यता से प्राप्त यह शिल्प हिंदू मान्यताओं की प्राचीनता सिद्ध करता है।

इस विषय में अधिक जानने के लिए निम्न विडियोज भी देखें -

https://youtu.be/5UCUv76LVCc


https://youtu.be/8KVe6Pnz1wo


४)हडप्पा में वैदिक शिल्पकला के अंश

सिन्धु सभ्यता में अधिकतर शिल्प शैव और शाक्त परम्परा के मिलते है इनमें बौद्धों से मेल खाता कुछ नहीं है। कुछ शिल्प ऐसे मिलते है जो वैदिक परम्परा से बनते आ रहें है। 

जैसे - शकट - चित्र में एक गाडी है इसे शकट कहते है ये उसका खिलौना रूप है, ये शकट वैदिक परम्परा के अवशेष दर्शाता है। यज्ञों में इस शकट के लाने का विधान है।

मिट्टी के पशु - इसको भी चित्र में देख सकते है। मिट्टी के पशु बनाने का निम्न स्थान पर वर्णन मिलता है - "मृन्मयान्यु हैके कुर्वन्ति" - शत.ब्रा. 6-10-38 

चमकीले बर्तन, हाथी - यह भी चित्र में दिखाया है इस शिल्प को बनाने का निर्देश गोपथ ब्राह्मण में प्राप्त होता है - यत् एव शिल्पानि, एतेषां शिल्पानां ..... हस्ती,कंस, रथशिल्पं - गो.ब्रा. 5-8-7 

इस प्रकार सिंधु सभ्यता में बहुतायत शाक्त, शैव और वैदिक अंश मिलते है।


संदर्भित ग्रन्थ एवं पुस्तकें -                                                                                                                    

1) शतपथ ब्राह्मण(भाष्य काण्ड 6-10) - भाष्यकार विश्वनाथ वेदालङ्कार

2) गोपथ ब्राह्मण - भाष्यकार क्षेमकरणदास त्रिवेदी जी 


५) यज्ञ कुंड के प्रमाण

वैदिक परंपरा में यज्ञ का बहुत महत्व है। १९६९ से १९७२ के बीच में कालीबंगा में बीबी लाल के नेतृत्व में हुई पुरातात्विक खोज में ७ यज्ञ वेदीया मिली थी। 

अब यहां कुछ लोग कहते हे की ये यज्ञ कुंड नही चूल्हे थे। लेकिन इसका जवाब भी इन्होंने अपनी ही पुस्तक The Rigvedic People में पूरा का पुरा चैप्टर दीया है की आखिर क्यों वे यज्ञ कुंड ही हे कोई चूल्हा नही। वोही से कुछ प्रमाण यहां भी रख रहा हु की चूल्हे कभी पूरा आयतकार नही होते बल्कि बीच में गैप होता है लकड़ियां डालने के लिऐ,जैसा आप फोटो में देख सकते हे इसके इलावा सिंधू सभ्यता में चूल्हे भी मिले हे जो की बिलकुल ऐसे ही हे।


 जबकि कालीबंग में मिले फायर एल्टर्स कॉम्प्लेट रेक्टेंगल है जिससे साबित होता है की वे यज्ञ वेदी ही हे और सिन्धु घाटी सभ्यता में यज्ञ होते थे। 


उपरोक्त सभी प्रमाणों से हिंदू मान्यताओं, मूर्तियों, प्रतीक चिह्न, चित्रण की ईस्वी पूर्व प्राचीनता सिद्ध है। जिनमें कुछ प्रमाण तो हिंदू मान्यताओं को हडप्पा सभ्यता में सिद्ध करते हैं। कुछ प्रमाण बुद्ध और अशोक कालीन तथा इनसे भी पूर्व के हैं। इसीलिए जो नवभौंदू हिंदू मान्यताओं को ईस्वी बाद और बौद्ध धम्म की नकल कहता है, उसे मिथ्या प्रचारक समझना चाहिए।


फैक्ट ४: कौनसा शब्द ज्यादा प्राचीन हिंदू शब्द या बौद्घ??

 

यहां पहले ही बता दू की हम हिंदू और बौद्ध इन्हीं दोनों शब्दों की तुलना कर रहे हे। इसीलिए समूहवाचक बौद्घ को संज्ञावाचक या गुणवाचक बुद्ध से कंफ्यूज ना करे। 


शिलालेखो पर हिंदू शब्द। 

राजा दरियुस ने ५२५ बीसी में अपने शिलाशास्त्र में हिंदुओं के लिए Hidauv शब्द का इस्तेमाल किया है। 

490 BCE में Naqas-e Rustam dna inscription में हिंदुओं को Hidus कहा गया हे

 जबकि राजा Shapur 1 ने 290 BCE में Hindustan शब्द का इस्तमाल किया है।

 जबकि शिलालेखो में पहली बार अशोक ने अपने minor rock edict 3 में 250 BCE में बुद्ध को Bu-dhe कह कर संबोधित किया हे। इससे ये साबित होता हे की हिंदू शब्द बौद्ध क्या बुद्ध से भी पहले का हे "पत्थरों के प्रमाण" के आधार पर।

असलीयत में ये बौद्ध शब्द भारत के किसी भी ग्रंथ या किताब में हे ही नही। यहां तक कि बुद्ध के ८४,००० सुतों में भी एक भी जगह पर ये शब्द नही हे और ना ही अशोक या किसी भी और राजा का शिलालेख में ये शब्द पाया जाता हे। जबकि पत्थरों के प्रमाण से हम ये साबित कर चुके हे की हिंदू शब्द बौद्ध से कही ज्यादा प्राचीन है।





Comments

Popular posts from this blog

सम्भोग जिहाद !

Adam married his own daughter......Then why do their children stick their legs on the marriage of Brahma Saraswati?

Archaeological evidence of Sanskrit language before 1500 BC.