संस्कृत के ईसापूर्व अभिलेख भाग - 2
पिछली पोस्ट में हमने संस्कृत के ईसापूर्व 3 अभिलेख सपाठ ब्लाग पर पोस्ट किये थे। जिसे निम्न लिंक पर जा कर पढा जा सकता है -
https://aproudhindubloging.blogspot.com/2021/06/blog-post_74.html?m=1
उसी कडी में अब कुछ और अभिलेख प्रस्तुत किये जा रहे हैं जो कि नवभौंदूओं के ईसापूर्व संस्कृत का कोई अभिलेख नहीं मिलता है, दावें को मिथ्या साबित करता है।
ये अभिलेख विदिशा के बेसनगर में मिले थे। जो कि विशाल यज्ञ के संदर्भ में मूद्रित किये गये थे। इनका प्रकाशन आर्केलोजिक सर्वे ओफ इंडिया 1914 - 15 में किया गया था। इसी विदिशा में ईसापूर्व 150 लगभग का वासुदेव का गरुडध्वज स्तम्भ तथा लेख भी मिला है। इसी बेसनगर नामक स्थान पर यज्ञ वेदियां और यूप तथा लेख भी मिले हैं जिन्हें चार भागों में बाटा गया है -
1) शासक का मूद्रण लेख
2) अधिकारी का मूद्रण लेख
3) अभयपात्र का मूद्रण लेख
4) विशिष्ट व्यक्तियों के नामों का मूद्रण लेख
ये सभी अभिलेख आर्केलोजी सर्वे की रिपोर्ट के अलावा 'मध्य प्रदेश ग्रंथ अकादमी से प्रकाशित, नि. भा. पू. सर्वे. नई दिल्ली के महेश्वर दयाल खरे की लिखित पुस्तक विदिशा तथा मध्य प्रदेश पूरातत्व विभाग से प्रकाशित पुस्तक ग्वालियर राज्य के अभिलेख' में भी हिंदी भाषा में प्रकाशित किये गये थे।
इन अभिलेखों में दो मूद्राओं पर शासकों का नाम है जिसमें से एक मुद्रा का लेख अस्पष्ट सा है, उस पर यज्ञश्री शब्द लिखा है तथा दूसरी मुद्रा का लेख इस प्रकार है -
स्यन्न ह ( I ) र ( ा ) ज श्री विश्व (I) मित्रस्य स्वाम-( निः)
इस मूद्रा पर नंदी और त्रिशुल बना है।
इन अभिलेखों में से एक और अन्य मुद्रा पर हाथी बना हुआ है तथा उसके नीचे अधिकारी का संकेत संस्कृत में निम्न प्रकार से लिखा है -
हयहस्त्याधिका | ] र
अर्थात् हय - घोडों और हस्ति - हाथियों का अधिकारी या व्यवस्थापक
साथ ही दो दंडनायकों की भी मुद्रायें मिली हैं, जिनमें से एक पर दो पंक्तियों में लिखा है -
.पर नु गु-
दण्डनायक विलु
तथा दूसरी मुद्रा पर लिखा है -
चेतागिरिक पुत्र
दं (ड) नायक श्रीसेन
इस प्रकार अधिकारियों का उल्लेख मिला है।
अभिलेखों में से एक अभिलेख अभयपात्र है जिस पर यूनानी शासक Demetrius का उल्लेख है तथा उसका यज्ञ में सम्मिलित होने का भी उल्लेख है। यह अभिलेख संस्कृत भाषा में है तथा Demetrius का काल लगभग 200 ईसापूर्व माना जाता है अत: ये मूद्रा लेख लगभग 200 ईसापूर्व संस्कृत के प्रमाण को सिद्ध करते हैं, लेख इस प्रकार है -
दिमित्र दातृस्य [ स ] हो [ ता ]
प (ो) तामंत्र सजन ( ौ ?)
कुछ अभिलेखों में यज्ञ में शामिल विशिष्ट व्यक्तियों के नाम हैं, सम्भवतः इन विशिष्ट व्यक्तियों ने यज्ञ में भेट की हो -
उन व्यक्तियों में से कुछ नाम वालें व्यक्तियों की मुद्रायें इस प्रकार है -
१' सूर्यभर्तृ वरपुत्रस्य
( त्र) स्य विष्णुगुप्तस्य
सूर्यभर्तृ वर पुत्र विष्णुगुप्त का"
(इस प्रकार के चार टुकड़े मिले हैं ।"
२ "( स् ) कन्द घोष पु [ त्र ]
स्य भवघोषस्य
'स्कंदघोष के पुत्र भवघोष को ।
( इस प्रकार के दो टुकड़े मिले हैं । )
३- श्री विजय ( तीन टुकड़े)
४-कुमारवर्मन्
५-विष्णुपिय
शेष अन्य नाम आप नीचे दिये चित्र पर क्लिक करके पढ सकते हैं जो कि आर्केलोजी सर्वे रिपोर्ट का है -
इस प्रकार ये सभी अभिलेख जिसमें यज्ञकर्ता राजा विश्वामित्र, यज्ञ श्री? , अतिथि राजा Demetrius, दंडाधिकारी और विशिष्ट व्यक्तियों का नामोल्लेख संस्कृत भाषा में है जो कि दिमित्र के काल अर्थात् लगभग 200 ईसापूर्व के हैं। ये सभी मूद्रा लेख 200 ईसापूर्व संस्कृत भाषा के प्रमाण के साथ - साथ यज्ञ क्रियाओं की सिद्धि भी करते हैं।
इससे नवभौंलूओं का ईसापूर्व संस्कृत भाषा नहीं होने का दावा खंडित हो जाता है।
संदर्भित ग्रंथ एवं पुस्तकें -
1) Archaeology survey of india annual report 1914 - 15
2) विदिशा - महेश्वरी दयाल खरे
3) ग्वालियर राज्य के अभिलेख - लेखक हरिहर निवास द्विवेदी
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