मित्तानी, पारसी और वैदिक सभ्यता!
हमारे कई फर्जी नवभौंदू इतिहासकार वैदिक सभ्यता को बुद्ध धम्म की नकल और बुद्ध के बाद का बताते हैं किंतु जब कुछ वैदिक मतानुयायी वैदिक सभ्यता की प्राचीनता के लिए मित्तानी साम्राज्य के Tušratta (- दशरथ) के संधि पत्र का प्रमाण देते हैं जो कि मृण पट्टिका पर लिखा हुआ है। इस समय यह मृण पट्टिका ब्रिटिश म्यूजियम में E29791 के नाम से सुरक्षित है।
इसे आप ब्रिटिश म्यूजियम की ओनलाईन साईट पर भी देख सकते हैं - https://research.britishmuseum.org/research/collection_online/collection_object_details/collection_image_gallery.aspx?partid=1&assetid=328224001&objectid=327168
इस पट्टिका पर वैदिक देव मित्र, अरुण, इंद्र, नास्त्यों के नाम प्राप्त हुए हैं जो कि वैदिक सभ्यता को 1500 b. C. से अधिक प्राचीन सिद्ध करते हैं और बुद्ध से भी प्राचीन सिद्ध करते हैं। इस पट्टिका के आधार पर अपनी बात को पलटते हुए नवभौंदू विद्वान कहते हैं कि वैदिक लोगों या ब्राह्मणों ने ये सब देवता इन मित्तानियों से लिये थे अथवा इससे आर्य विदेशी मित्तानी सिद्ध होते हैं जो बाद में भारत आये और अपने वैदिक देवों का प्रचार करने लगे। कुछ बुदुष्टितों का कहना है कि यह बौद्ध त्रिपिटकों में आये हुए देव है जिन्हें बाद में बौद्ध ग्रंथों से ब्राह्मणों ने चुराया।
इनमें बौद्ध ग्रंथों से चुराने या मित्तानी में बौद्ध ग्रंथों से लेने की बात का खंडन तो इसी बात से हो जाता है कि बौद्ध ग्रंथों में इंद्र, मित्र आदि का नाम तो है किंतु नास्त्यों का नाम नही है। ये देव वेदों अथवा वैदिक वाङ्मय में अश्वनिकुमार नाम से सभी जानते हैं।
दूसरी बात की आर्य विदेश से आये और ब्राह्मणों ने मित्तानियों से यह नाम लिये तो इस बात का खंडन तो प्रथम इस बात से होता है कि इनमें आये नाम इंद्र, मित्र तो त्रिपिटक साहित्यों में भी मिलते हैं फिर इस आधार पर क्यों न ये माना जाये कि बौद्धों ने मित्तानियों की नकल की अथवा बौद्ध मित्तानी विदेशी थे?
अब जब हम इस मृत पट्टिका पर लिखे अभिलेख के अनुवादों को पढते हैं तो स्पष्ट होता है कि इस पट्टिका में न केवल वैदिक देवों के नाम है अपितु अकेडियन, सुमेरियन, हुरियन देवों के भी नाम है। इसका अर्थ हुआ कि ये पट्टिका विभिन्न प्राचीन सभ्यताओं के प्रसिद्ध देवों की स्तुति से प्रारम्भ की गई है जब अकेडियन, सुमेरियन से देवों का ग्रहण किया गया है तो क्यों न यह माना जाये कि इसमें आये वैदिक देवों के नाम भी वेदों और भारतीय आर्यों से ग्रहण किये हों?
पाठकों की संतुष्टि के लिए मृण पट्टिका के चार अनुच्छेदों का रोमन लिपि में मूल पाठ और अंग्रेजी अनुवाद तथा हिंदी भावार्थ प्रकट करते हैं। मूल पाठ में जहां xx है वो लिप्याक्षर के मिटने के कारण अस्पष्ट है।
Cuneiform] DU AN ù KI 'XXX [ù]PUTU 'XXX ša
OERKASKAL-ni AN ù KI DU EN kùr-ri-in-[nil (0)RU Ka-hat
PU EN Ù-hu-uš-ma-a-ni
ITransliteration] DU šamē u erșeti DXXX u PUTU "XXX ša
URU
Ù-ḥu-uš-ma-a-ni
Harrani šamũ u erșetu DU bēl kurrinni URU Kahat DU bēl
RE Uhušmāni
-1 paragraph
इस पेराग्राफ में कुछ अकेडियन देवों के नाम आये हैं जैसे -
DU šamē u erșet अर्थात् धरती और आकाश का देव।
DUTU अर्थात् चंद्र देव
Ù-hu-uš-ma-a-ni अर्थात् देवों का प्रमुख राजा वा उसमान की धरती का देवराज।
इसी प्रकार दूसरे अनुच्छेद में सुमेरियन देवों के नाम है -
Cuneiform] PÉ.A EN ha-si-si, " ! "SUMUQAN [ša]16
'Kùr-dá PA-nu ù An-tu, DEN.LÍL ù "NIN.LÍL
[Transliteration] PÉ.A bēl hasisi "Sumuqan [ša] DKurda
PAnu u "Antu DEN.LÍL u 'NIN.LÍL
(D)
इस अनुच्छेद में सुमेरियन देवों के नाम हैं जैसे कि -
hasisi 'Ea अर्थात् बुद्धि के भगवान।
Antu अर्थात् आकाश देव
Panu अर्थात् आकाश देवी
इसी प्रकार तीसरे अनुच्छेद में वैदिक देवों के नाम आये हैं किंतु उससे पहले हम चतुर्थ अनुच्छेद को लेते हैं जिसमें हुरियन देवों के नाम आये है ं -
Cuneiform] 'KASKAL.KUR DŠa-ma-an-mi-nu-hé DU
EN ORWA-šug-ga-an-ni PU EN URU ka-ma-ri-bi
de, 'Na-bar-bi "Šu-ru-hi PIŠTAR "IŠTAR MUL //
la "NIN.É.GAL 'NIN a-ia-ak-ki "Iš-ḥa-ra "Pár-da-a-ḥi
RUŠU-u-da
[Transliteration] PKASKAL.KUR PŠamanminuḥe DU
URUWaššukkanni DU bēl >URU<kamaribi URUIrride URU Ir-ri-
Dša-
bēl
'Nabarbi DŠurūḥi PIŠTAR PIŠTAR kakkabi PŠala
PNIN.É.GAL PBēlet ayakki PIšhara "Pardāḥi
URUŠūda
इस अनुच्छेद में आये कुछ हुरियन देव निम्न है -
Nabarbi अर्थात् तारों का देव
Kamaribi अर्थात् धरती का देव
इसी तरह तीसरे अनुच्छेद में वैदिक देवों के नाम है -
D.MEŠMI-it-ra-aš-ši-il D.MESA-ru-na-aš-ši-il PIn-da-
DINES Na-ša-at-ti-ya-an-na
[Cuneiform]
ra
D.MEŠ
Mitraššil Arunaššil Indara Našattiyanna
[Transliteration]
इस अनुच्छेद में निम्न वैदिक देवों के नाम है -
मित्र, अरुण, इंद्र और नास्त्यों। आश्चर्य की बात यह है कि यह शुद्ध संस्कृत या वैदिक भाषा में नही है बल्कि अपभ्रंश रुप में है जैसे मैगस्थनीज, हैरोडोट्स आदि युनानियों ने भारतीय नगरों मथुरा को मेथोरिस और कश्यपपुर को कस्सपटोरिस लिखा है अर्थात् ये चारों शब्द भी वेदों से मित्तानियों ने ग्रहण किये हुए लगते हैं। इसकी पूरी तरह पुष्टि हमें ऋग्वेद के 10 वें मंडल के 125 सूक्त के पहले मंत्र में आये देवों के नाम से हो जाती है -
इस सूक्त में यही देवता कुछ पाठभेद से प्राप्त होते हैं किंतु इनका भावार्थ समान है जैसे कि -
ऋग्वेद में वरुण है जबकि मित्तानी में अरुण है। किंतु अरुण और वरुण दोनों का प्रयोग सूर्य्य के लिए होता है।
इसी तरह ऋग्वेद के अश्विनों का नास्त्यों पाठ है। सम्भवतः यह नाम इन्होंने पाठभेद के साथ ऋग्वेद की किसी अन्य शाखा के मंत्र से ग्रहण किये हों।
इससे सिद्ध है कि यह नाम वेदों से ग्रहण हुए हैं और मित्तानियों ने वैदिक सभ्यता से अंक गणना का भी ग्रहण किया था इसकी भी पुष्टि बर्लिन संग्राहलय में रखी एक और मृण पट्टिका से होती है जिसमें घोडों को प्रशिक्षित करने का उल्लेख है। इसमें विषम अंकों को संस्कृत अपभ्रंश में लिखा है।
a-i-ka-ua-ar-ta-an-na (aika-uartanna) ti-e-ra-ua-ar-ta-an-na (tēra-
uartanna). pa-an-za-ya-ar-ta-an-na (panza-yartanna) ša-at<-ta>-ua-ar-ta-an-na (šatta-uartanna) na-a-ua-ar-ta-an-na (nayartanna)
यहां 1,3,5,7,9 को संस्कृत अपभ्रंश में देखा जा सकता है वही चक्कर के लिए मित्तानि शब्द उरतन्ना का प्रयोग हुआ है। इससे भी लगता है कि इन्होंने अंक भारतीयों अथवा वैदिक शुल्बादि सूत्रों सज ग्रहण किये थे।
सम्भवतः मित्तानी राजा सर्वपंत सम्भाव वाला हो जो सुमेरिया, वैदिक, अकेडियन आदि सभ्यताओं के देवों तथा शब्दों का प्रयोग अपने अभिलेखों में करता था।
कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि मित्तानियों ने यह सब पारसियों, ईरानियों से ग्रहण किया हो और इन्हीं से भारतीय ब्राह्मणों ने ग्रहण किया हो? किंतु जिन्दावस्था और भारतीय वाङ्मय के तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है कि भारतीयों के साथ ही ये सब ईरान या पारसियों में पहुंची थी अर्थात् पारसियों ने वेदों से ग्रहण किया हैं न कि वेदों ने पारसियों से।
हरिवंश पुराण में आया है -
मनुर्वैवस्वत: पूर्व श्राद्धदेवः प्रजापतिः |
यमश्च यमुना चैव यमजौ सम्बभूवतुः ॥ ८ ॥
उनमें एक प्रजापति तो विवस्वान् ( सूर्य ) के पुत्र वैवस्वत मनु थे और दूसरे प्रजापति श्राद्धदेव यम थे । इस तरह यम तथा यमुना नामक दो जुड़वीं संतान उत्पन्न हुई थी ॥
हरिवंश 9.8
यहां मनु और यम दोनों को प्रजापति कहा गया है किंतु मनु भारत के प्रजापति थे किंतु यम कहां के थे? इसका समाधान जिन्दावस्था के ह ओम यश्न को देखने से हो जाता है -
इसमें वीवह्वन्त अर्थात् विवस्वान का पुत्र यिम अर्थात् यम को अपना शासक अर्थात् प्रजापति बताया है। अत: वैदिक आर्य विवस्वान की ही दूसरी संतति यम के द्वारा ही पारसियों का साम्राज्य चला था। अत: यह वैदिक सभ्यता के बहुत बाद की है तथा यम के साथ ही वहां वैदिक देवों का प्रचार हुआ था। इससे हम पारसी मत को भी अन्य मतों के समान वैदिक धर्म की एक शाखा मान सकते हैं। इतना ही नही अवेस्ता में हमें भगवान राम का भी उल्लेख प्राप्त होता है -
यहां लिखा है - पोऊरु खाथ्रेम बवाहि यथ रामनो"अर्थात- राम की तरह पूर्ण क्षत्रिय हो जाओ।
अत: अवेस्ता वेदों के पश्चात् है तथा वेदों से संज्ञायें ग्रहण करता सिद्ध होता है।
इस पोस्ट के माध्यम से हमने सिद्ध किया है कि आर्यों का मूल भारत ही है और वेदों की प्राचीनता सुमेरियन, अकेडियन आदि सभ्यताओं से भी प्राचीन सिद्ध होती है। प्राचीन विदेशी सभ्यताओं में वैदिक अंश प्राप्त हो जाते हैं किंतु बुद्ध या 24 बौद्धों का कोई उल्लेख प्राप्त नही होते हैं, इससे बुद्ध और बाकि सभी बुद्ध वेदों के पश्चात् ही सिद्ध होते हैं और बौद्धों ने वेदों से देवों को नकल किया यह भी सिद्ध होता है।
संदर्भित ग्रंथ एवं पुस्तकें -
1) About the mitaani and aryan god - Arnaud fournet
2) The kikkuli text - peter Raulwing
3) Khordeh avesta - ervad kavasji edalji kanga
4) जिन्दावस्था - राजाराम
5) हरिवंश पुराण - रामनारायण दत्त शास्त्री
6) ऋग्वेद
7) British Museum gallery
Original Source:
https://nastikwadkhandan.blogspot.com/2019/12/blog-post_18.html?m=1
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