संस्कृत के ईसा से पूर्व के अभिलेख



भीमटे और ईसाई ये दुष्प्रचार करते हैं कि संस्कृत के ईसा से पूर्व कोई शिलालेख अभिलेख प्राप्त नहीं होते है। जबकि भीमटों और ईसाईयों की ये बात बिल्कुल गलत है। ईसा पूर्व के लगभग 4 शिलालेख अभी तक प्राप्त हो गये हैॆ। यदि आगे और खोज और खुदाई कार्य चलेगा तो अन्य भी शिलालेख प्राप्त हो सकते हैं।

यहां हम ईसा पूर्व के 3 शिलालेखों का उल्लेख करते हैं -

(1) हाथीबाडा का अभिलेख -

चित्तौड़ के निकट नागरी नामक ग्राम से डेढ़ किलोमीटर पूर्व हट कर एक हाथीबाड़ा स्थान है वहा 1926 को एक शिलालेख मिला जिसकी लिपि ब्राह्मी और भाषा संस्कृत है। यह अभिलेख ईसा पूर्व दूसरी सदी का है अर्थात् 200 ईसा पूर्व का है।

"कारितों अयं राज्ञा भाग वतेन राजायनेन पराशरीपुत्रेण स

र्वतातेन अश्वमेध या जिना भागवदभ्यां संकर्षण वासुदेवाभ्याँ

अनिहताभ्याँ सर्वेश्वराभ्यां पूजा - शिला प्रकारो नारायण वाटिका।

अर्थात् अश्वमेध याजिन राजा भागवत गाजायन पाराशरीपुत्र सर्वतात ने इस पूजाशिला प्राकार को भगवान संकर्षण वासुदेव के लिए, जो अनिहत और सर्वेश्वर हैं, बनवाया।

दूसरा अभिलेख इलाहाबाद जिले में कौशाम्बी के निकट पभोसा नामक स्थान पर स्थित एक गुहा की दीवार पर प्राप्त हुआ है। इसका काल फुरहरर ने 200 ईसा पूर्व के आसपास माना है -

राज्ञो गोपाली पुत्रस

बहसतिमित्रस

मातुलेन गोपालिया वैहीदरी पुत्रेन आसाढसेनेन लेनं कारितं ऊदाकस दशं संवत्सरे अ हि छि त्र अरहं.... त ।।

अर्थात् राजा गोपालीपुत्र बृहस्पतिमित्र के मातुल गोपालिका वैहिदरीपुत्र आषाढ़सेन का बनाया लयण। उदाक के दसवें संवत्सर में अर्हंतो के लिए।

तीसरा अभिलेख अयोध्या से प्राप्त हुुआ है जिसका समय 150 - 100 ईसा पूर्व के आसपास माना जाता है।

कोसलाधिपेन द्विररश्वमेधयाजिनः सेनापतेः पुष्पमित्रस्य षष्ठेन कोशिकीपुत्रेण धनदेवेन

धर्मराज्ञा पितुः फल्गुनदेवस्य केतनं कारितं।।

अर्थात् कोसलाधिप दो अश्वमेध यज्ञ करने वाले सेनापति पुष्यमित्र के छठे (वर्ष में) कौशिकीपुत्र धनदेव द्वारा बनवाया हुआ अपने पिता धर्मराज फल्गुदेव का केतन (ध्वज स्तम्भ)।

इस प्रकार ये तीनों अभिलेख ईसा से 100 वर्ष पूर्व के है। इससे आप उन तथाकथित भाषा वैज्ञानिकों का स्तर देख सकते हैं जो 80 भाषाओं के ज्ञाता बनते हैं और कहते हैं कि संस्कृत का सबसे पूराना शिलालेख रूद्रादमन का है और ईसा पूर्व संस्कृत नहीं थी। ईसा पूर्व संस्कृत का कोई अभिलेख नहीं है। जबकि ये तीनो शिलालेख भाषा विज्ञान, अभिलेखों का अध्ययन करने वालों और इतिहास के विद्यार्थियों का पाठ्य क्रम में हैं। जो इतनी सी बात से परिचित न हो उसका ज्ञान बहुत ही निम्न स्तर का है और यदि इनके बारे में पता है तो अवश्य ही उसे धूर्त समझिये जो लोगों को दूसरी जाति और धर्म के बारे में भड़का रहा है तथा गलत जानकारियाँ दे रहा है।

(अन्य प्रमाण - सिक्के भी इतिहास में बहुत महत्त्व रखते हैं। सिक्कों का अध्ययन शिलालेखों की भाँति या कहें कहीं - कहीं उससे भी ज्यादा प्रमाणिक होता है। लगभग 200 ई.पू. के प्राचीनतम हरियाणा के तत्कालीन यौधेेय राजाओं के सिक्के प्राप्त होते हैं। इन सिक्कों पर संस्कृत में लिखा है - 

"यौधेयानां बहुधान्यके" अर्थात् यौधेयों का बहुधान्यके प्रदेश। 

ये ईसा पूर्व संस्कृत का एक और प्रमाण है।)

संदर्भित ग्रन्थ एवं पुस्तकें - 

1) प्राचीन भारत के प्रमुख अभिलेख - डॉं. परमेश्वरीलाल गुप्त

2) http://asijaipurcircle.nic.in/hathiwada%20enclo.html

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