क्या मौर्य वंश के समय संस्कृत भाषा नही थी ?

 अम्बेडकर वादी लोग संस्कृत और वैदिक धर्म से द्वेष के चलते ये कहते है कि मौर्य काल में संस्कृत का कोई शिलालेख या लिखित प्रमाण नही मिलता है इसलिए संस्कृत मौर्य काल के बाद की है कुछ तो ये भी कहते है कि संस्कृत ईसा के बाद की है | लेकिन इन लोगो को सोचना चाहिए कि प्राकृत के शिलालेख अशोक के समय बहुआयत में मिलते है अशोक से लगभग २०० वर्ष पूर्व तक ही प्राकृत पालि के शिलालेख मिलते है तो क्या इस आधार पर ये कहा जा सकता है कि प्राकृत भाषा भी अशोक के समय बनी थी उससे पूर्व नही थी ? 

मौर्य काल में प्राकृत के शिलालेख मिलने का कारण ये है कि मौर्य काल में प्राकृत को बौद्ध धम्म प्रभाव के कारण राजाओं ने राष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रयोग किया था जिसमे राजा के संदेश ,राजा के किये कार्य और आदेशो को खुदवाया गया लेकिन जैसे ही वैदिक धर्म पुन भारत में स्थापित हुआ तो राजाओं ने संस्कृत को महत्व दिया और संस्कृत के शिलालेखो में अधिकता आई ,यही कारण है कि प्राकृत की अपेक्षा संस्कृत के शिलालेख ,ताम्रपत्र अधिक है | प्राचीन ग्रंथो का शिलालेख रूप में उल्लेख न मिलने का कारण यह है कि शिलालेख राज्य व्यवस्था और राजा के कार्यो ,संदेशो का वर्णन करते है धर्म विधान का नही धर्मो के विधान ,ग्रन्थ ,शास्त्र आदि ताड़पत्रों पर लिखे जाते है चाहे वो त्रिपिटक हो या अन्य शास्त्र और ताड़पत्र का काल बहुत कम होता है और ये काल के कराल में समा जाते है | जैसे आज किसी अच्छे से अच्छे क्वालिटी के कागज में हम कोई बात लिखे तो वो लगभग १०० साल में पूरी तरह नष्ट हो सकता है तो फिर प्राचीन पांडूलिपियों का क्या कहना | 

अब मौर्य काल में मिले शिलालेख का उल्लेख देते है जिसकी भाषा संस्कृत और लिपि ब्राह्मी है - 

(१) मथुरा के संग्रालय में यवनराज नामक शिलालेख है जो कि संस्कृत में है और इसका काल ईसा से २०० वर्ष पूर्व बताया है


|यदि खुदाई आदि कार्य और तेजी से और अधिकता ,निष्पक्षता से होवे तो सम्भवत इससे भी पुराने संस्कृत के शिलालेख मिल सकते है | 

संस्कृत एक समय में आम बोलचाल की भी भाषा थी उसका प्रभाव विदेशो की प्राचीन सभ्यता में भी था इसके अनेको प्रमाण शिलालेखो में मिले है -

(*१) तुर्क में मित्तानी सभ्यता (लगभग १५०० ईसा पूर्व ) में मिले टेराबाईट में अनेको राजाओं का नाम संस्कृत में है जिसमे एक नाम दशरथ है | 

(२) मुलैपुट्टू नामक एक घोड़ो को अभ्यस्त करने वाली लगभग ३५० ईसा पूर्व का एक ग्रन्थ संगम काल के तमिलनाडू में है जिसमे घोड़ो को संस्कृत शब्दों से अभ्यस्त करने का उल्लेख है इससे सिद्ध है कि 350 ईसा पूर्व संस्कृत लोक सामान्य भाषा थी | 

हित्ती में ही १०८० लाइनों का राजसूय यज्ञ जैसा चक्र मिला है जिसमे लिखे अंक संस्कृत भाषा के है जैसे सप्त ,नव आदि | 

हित्ती और मित्ती साम्राज्य का एक संधि पत्र भी मिला है जो १३८० ईसा पूर्व बताया गया है जिसमे वैदिक देवो के नाम -इंद्र , मित्र ,वरुण ,नासत्य लिखे हुए मिले है | 

वियतनाम के पंडया राजाओं के नाम भी संस्कृत में प्राप्त हुए है जैसे श्री मरण 

(3) नाणाघाट की गुफाओं से कई ब्राह्मी लिपि के लेख मिले है जो ईसा से 200 और कुछ के अनुसार 300 वर्ष प्राचीन बताए गए है इसमें वैदिक देवों धर्म(यम), कुबेर, वसुदैव, समकृष्ण(बलराम) के नामों का उल्लेख है जो संस्कृत में है। 


इन सबसे स्पष्ट है कि संस्कृत प्राचीन भाषा है और इसका विश्व स्तर पर प्रभाव था |

Original Source:

https://nastikwadkhandan.blogspot.com/2018/02/blog-post_95.html?m=1

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