#बुद्धिज्म के इतिहास का मुआयना 👇

 एक तथाकथित स्तूप जो जांच करने पर कार्तिकेय मंदिर निकला भारतीय प्राचीन इतिहास के साथ इतिहासकारों ने यह दुर्व्यवहार किया है कि उन्होंने हर चक्र जैसी आकृति को धम्म चक्क, गुंबदाकार आकृति को स्तूप और वृक्ष को बोधिवृक्ष तथा ध्यानपूर्वक बैठे व्यक्ति को बुद्ध घोषित कर दिया॥ बिना किसी जांच परख के ये लोग हिंदू संस्कृति और मंदिर परम्पराओं को नवीनतम दिखलाने लगे। ऐसा ही ईसापूर्व प्राचीन त्रकार्ता गण के प्राचीन सिक्कों के साथ हुआ।

इन पर त्रिमंजिला गुम्बदाकार आकृति थी। जिसे पी एल गुप्त ने स्तूप बताया किंतु ब्रिटिश संग्रहालय में रखे इन सिक्कों को जांचा गया तो, इनमें तथाकथित स्तूप के समक्ष एक पक्षी की आकृति दिखाई दी। ये पक्षी मुर्गा था जो कि कार्तिकेय का एक प्रतीक माना जाता है। इसे कुक्कुट ध्वज के रुप में देखा जा सकता है। अतः तथाकथित स्तूप वास्तव में एक बहुमंजिला प्राचीन कार्तिकेय मंदिर था। इस बात में यह भी प्रमाण है कि भारत के अधिकांश प्राचीन गण शैव और वैष्णव ही रहे हैं, उनके सिक्कों पर बुद्ध के स्थान पर कार्तिकेय, शिव, कृष्ण, बलराम, लक्ष्मी, पार्वती व यज्ञयूप ही मिलती हैं। ये सिक्के 200 ईसापूर्व से 200 ईस्वी तक प्रचलन में रहे हैं। प्राचीन गणों के धार्मिक विश्वासों पर एक विस्तृत पोस्ट अलग से की जायेगी।


संदर्भ - Tribal coins of ancient india

शोध - #SanatanSamiksha ( नटराज नचिकेता )




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