बौद्ध मत में स्त्री - पुरुष भेदभाव (स्त्री महाब्रह्मा नहीं हो सकती)

 बौद्धमत में जितने भी बुद्ध शाक्य गौत्तम पर्यन्त हुए हैं, उनमें से एक भी बुद्ध स्त्री नहीं है। न ही आगे कोई स्त्री बुद्ध होगी। क्योंकि प्रत्येक बुद्ध अपने जीवनकाल में आने वाले बुद्ध की भविष्यवाणी अवश्य करते हैं और आगे मैत्रेय नामक बुद्ध होंगे, जो कि स्त्री नहीं है। इसी प्रकार एक और भेदभाव बौद्ध मत में है, जिसमें स्त्री पुरुषों की तुलना में हेय है। वो है कि स्त्री कभी भी महाब्रह्मा नहीं बन सकती है जबकि पुरुष बन सकता है।

"अट्ठकथाकार के अनुसार स्त्रियाँ आठ समापत्तियों का लाभ प्राप्त करके ब्रह्मभूमि में उत्पन्न हो सकती है। इस ब्रह्मभूमि के विभावनीकार ने 4 भेद बताये हैं - 1) ब्रह्मा 2) ब्रह्मपरिषद ब्रह्मा 3) ब्रह्मपुरोहित ब्रह्मा 4) महाब्रह्मा।

साथ ही विभावनीकार लिखते हैं कि "स्त्री के छन्द, वीर्य, चित्त तथा मीमांसा स्वभाव से ही पुरुषों की तरह तीक्ष्ण न होने से स्त्रीभव से च्युत होकर ब्रह्मभूमि में उत्पन्न होने पर भी वे महाब्रह्मा नहीं हो सकती है।" - विभावनी, पृष्ठ 140

विभावनी पृ. 141 में अट्ठकथा "ब्रह्मतं ति महब्रह्मतं अधिप्पेतं" के प्रमाण से दर्शाया गया है कि स्त्री महाब्रह्मा नहीं हो सकती है। 


यहां हमें निम्न निष्कर्ष प्राप्त होते हैं -

- बौद्ध लोग स्त्रियों को ही तुच्छ नहीं समझते थे बल्कि स्त्रीत्व को ही हीनता से देखते थे। इसीलिये लिखा है कि स्त्री जब ब्रह्मभूमि में जाती है तो स्त्रीभव (स्त्रीत्व) से च्युत अर्थात् हटकर जाती है अर्थात् स्त्रीत्व के साथ स्त्री का ब्रह्मभूमि में भी जाना असम्भव है। इसमें भी स्त्रियोें के प्रति भेदभाव की एक और बडी झलक मिलती है कि यदि स्त्री अपने स्त्रीभव से हटकर भी ब्रह्मभूमि में चली जावें तो भी वो महाब्रह्मा तो कभी भी नहीं बन सकती है। अर्थात् महाब्रह्मा पद या भूमि पर केवल पुरुषों का ही आरक्षण बौद्ध मतानुयायियों ने कर दिया था।

यहां कोई भीमटा ये भी कह सकता है कि ये तो बाद के भिक्षुओं ने भेदभाव किया था। बुद्ध दोनों को समान मानते थे। उन लोगों को लिए हम एक प्रमाण रखते हैं जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि बुद्ध पुरुष भिक्षु और स्त्री भिक्षु में भेदभाव करते थे तथा पुरुष भिक्षु को स्त्री भिक्षु की तुलना में अधिक उच्चता, वरीयता प्राप्त थी।

चुल्लवग्ग 4 (10/4;14) में बुद्ध भिक्षुणिओं को आदेश करते हैं - "अनुमति देता हूँ, भिक्षुणी को भिक्षु देख दूर हट उसे मार्ग देने की।"

यदि हम बुद्ध के इस वचन की तुलना मनु से करें तो मनु ने कहा है - "स्त्रियाः पन्थादेय - मनु 2/113 अर्थात् स्त्रियों को पहले मार्ग देंवे।

इससे स्पष्ट है कि बौद्धमत में स्त्री या स्त्रीत्व को हीन दृष्टि से देखा गया है।

संदर्भित ग्रंथ एवं पुस्तकें - 

1) विनय पिटक - राहुल सांस्कृत्यायन

2) अनिरुद्धाचार्य प्रणीत अभिधम्म अर्थसंग्रह - प्रों रामशंकर त्रिपाठी

3) मनुस्मृति - अनु. सुरेन्द्रकुमार जी

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