बौद्ध अनुयायी के स्त्री विरोधी विचार

 


चाणक्य नीति में आये स्त्रियों पर आये कुछ श्लोक देख कुछ बौद्ध आप्पति करते है लेकिन उन्हें अपने पालि ग्रंथो और बौद्ध भिक्कुओ द्वारा लिखे ग्रंथो पर भी ध्यान देना चाहिए | यदि आप कहे कि ये ब्राह्मणों की मिलावट है तो फिर बौद्ध मत की अच्छी बाते भी ब्राह्मणों की माननी चाहिए क्यूंकि बौद्ध ग्रन्थ आदि बुद्ध के काफी बाद लिखे गये है उनके अधिकतर शिष्य ब्राहमण और क्षत्रिय (शाक्य ,लिच्छवी ) आदि ही रहे है | और यदि बौद्ध बन कर भी वे ब्राह्मण मत का प्रचार करते रहे तो उन्होंने बौद्ध मत ही क्यूँ फैलाया क्यूँ बाद में उसे वैदिक /हिन्दू में परिवर्तित नही किया | यहा तक की बौद्ध को हिन्दू देवो से ऊंचा तक बताया और अशोकवंदन जैसे काल्पनिक ग्रन्थ बना मनमाने आक्षेप आर्य राजाओ पर लगाये | इससे स्पष्ट है कि वे बौद्ध धम्म प्रचारक ही थे चमत्कारिकता से अधिक लोग भक्त अनुयायी बनते है इसलिए उन्होंने चमत्कार जोड़े न कि बौद्ध मत को गिराने के लिए | 

तो प्रसिद्ध बौद्ध सारिपुत्त के शिष्य संघरक्खित जो बौद्ध सम्राट विजय बाहू के समय संघराज थे इनकी कृति है " सुबोधालन्कार " जिसमे इन्होने लिखा है - 

" स्त्रियों पर ,दुर्जनों पर , विष पर ,सींग वाले पशु पर ,नदी पर ,रोग पर तथा राज्याधिकारियो पर विशवास करना ठीक नही है | " ऐसा ही कुछ कुछ चाणक्य ने लिखा है अब बौद्ध लोग कहते है मेरा मतलब नवबौद्ध (नीलायान वाले ) कहते है कि हिन्दुओ ने पालि ग्रंथो से संस्कृत में कॉपी पेस्ट किया इसका मतलब ये चाणक्य के कुछ स्त्री विरोधी श्लोक सम्भवत: वही से कॉपी हुए होंगे | यदि वे चाणक्य के श्लोक स्त्री विरोध में और गलत मानते है तो चाणक्य ,तुलसी की तरह संघरक्षित के ये श्लोक भी स्त्री विरोधी है | हम चाहे चाणक्य हो चाहे तुलसीदास दोनों के श्लोक स्त्री विरोधी होने से अमान्य ही मानते है | नवबौद्ध अपना भी देखे तब दुसरे में दोष निकाले |

संदर्भित ग्रन्थ एवम् पुस्तके - 

(१) पाली साहित्य का इतिहास - राहुल सांस्कृत्यायन 

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