बुद्ध के अनुसार चाण्डालनिषादादि जातियाँ नीच (तम) है।

 अम्बेडकरवादी नवभौंदू हमेशा ये दावा करते हैं कि हिन्दू ग्रंथों में मनुष्य को वर्णों के अनुसार उच्च और निम्न में वर्गीकृत करके भेदभाव उत्पन्न किया है जबकि बुद्ध सभी मनुष्यों को समान मानते थे, उनमें कुल और जाति के अनुसार उच्च - नीच नहीं मानते थे।

जबकि उनका ऐसा दावा केवल उनके रेत में महल बनाने के समान ही है, जो अब इस आंधी में ढैर होने वाला है।
बौद्धों के ग्रंथ संयुत्तनिकायपालि के कोसलसंयुत्तं नाम के तृतीय वग्ग में 21 वां अध्याय पुग्गलसुंत्त है, उसमें बुद्ध ने चार पुग्गल बताये हैं, जिनमें प्रथम है - तमोतमपरायनों अर्थात् नीच से नीच गति।
इस प्रथम पुग्गल की व्याख्या में बुद्ध ने पुक्कुस, चाण्डाल, वेनकुल, निषाद इन जातियों को तम अर्थात् नीच माना है। इनको देखने में कुरुप, बौना, दुर्वर्ण भी बताया है। इतना ही नहीं बुद्ध ने इनकी तुलना रक्तमिश्रित मल से भी की है।
प्रमाण के लिए संयुत्तनिकाय के चित्रों को सलग्न किया गया है -

इससे सिद्ध है कि बुद्ध भी कुल और जात्यानुसार उच्च - नीच अर्थात् तम - ज्योति मानते थे।
संदर्भित ग्रंथ एवं पुस्तकें - 
1) संयुत्तनिकायपालि - स्वामी द्वारिकादास शास्त्री  

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