बौद्ध स्तूप से यज्ञ का प्रमाण 2

 हमने पहले भी बौद्ध स्तूप से वैदिक यज्ञ का प्रमाण दिया था जो कि कश्यप जाटिल कथा से सम्बंधित था। अब पुनः इस नई पोस्ट में हम बौद्ध स्तूप तथा स्तूप पर बने फलक से सम्बंधित जातक कथा के तुलनात्मक अध्ययन से यज्ञ का प्रमाण देगें। यहां स्तूप फलक का प्रमाण इसलिए दिया जायेगा कि नवबौद्ध इस जातक कथा की प्रमाणिकता पर संदेह या सवाल न कर सकें। 


तो वो जातक है सुत्तपिटक के खुद्दकनिकायपालि में जातकपालि 2 के महानिपातो 22 के जातक क्रमांक 547, महावेस्सन्तर जातक से -


इस जातक में बुद्ध पूर्वजन्म में वेस्सन्तर नामक राजा हुआ करते थे। जो कि दानशीलता के लिए अत्यंत प्रसिद्ध थे। हम यहां सम्पूर्ण जातक कथा तो नहीं लिख सकते हैं किंतु इस जातक में आये अग्निहोत्र, यज्ञ के प्रमाणों को उद्धृत करते हैं -


(1) वेस्सन्तर को यजमान अर्थात् यज्ञ करके दान देने वाला कहा है - 



- जातक (षष्ठ खंड), पृष्ठ क्र. 546 
इसको आप मूल पालि में भी देख सकते हैं -  

- दानकण्णवण्णना, 22 महानिपातो, जातक अट्ठकथा 7, खुद्दकनिकाय (अट्ठकथा), सुत्तपिटक (अट्ठकथा) 

यहां वेस्सन्तर को यजमान कहा गया है। अर्थात् यज्ञ करके दान करने वाला राजा। 

(2) वेस्सन्तर को अग्निहोत्री राजर्षि कहना -    

- जातक (षष्ठ खंड), पृष्ठ क्र. 546 

इसको मूल पालि में भी देखिये -    

- वनपवेसनकण्डवण्णना, 22 महानिपातो, जातक अट्ठकथा 7, खुद्दकनिकाय (अट्ठकथा), सुत्तपिटक (अट्ठकथा) 

यहां वेस्सन्तर को आहुतग्गी कहा है अर्थात् अग्नि में आहुति देने वाला अर्थात् अग्निहोत्री.. यह प्रमाण जातक में अग्निहोत्र का प्रमाण देता है। 
     (3) नवमिय यज्ञ और अग्निहोत्र का प्रमाण -      

- जातक (षष्ठ भाग), 569

इसका भी मूल पालि देखिये -      

- जूजकपब्बवण्णना, 22 महानिपातो, जातक अट्ठकथा 7, खुद्दकनिकाय (अट्ठकथा), सुत्तपिटक (अट्ठकथा) 

यहां वेस्सन्तर के समानांतर एक वृद्ध ब्राह्मण तथा उसकी युवा स्त्री की भी कहानी है। इस प्रकरण में युवा ब्राह्मणी के कोई संतान उत्पन्न नहीं होती है, इसपर नगर की अन्य स्त्रियां उस ब्राह्मणी को ताने मारती हैं और कहती हैं - "तेरा नौमी का यज्ञ ठीक नहीं हुआ और तेरा अग्निहोत्र ठीक नहीं हुआ होगा।"

यहां पालि में नवमिय शब्द है जिसको अट्ठकथा में नवमिय याग कहा है तथा अग्गिहुत्त को अग्गिजुहन अर्थात् हवन कहा है। 

इस प्रकार यहां नवमिय याग और अग्निहोत्र का स्पष्ट उल्लेख प्राप्त होता है। 

(4) वेस्सन्तर का हवन करना - 


  - जातक (षष्ठ खंड), पृष्ठ क्र. 579 

इसको मूल पालि से भी देखिये - 

- चूळवनवण्णना, 22 महानिपातो, जातक अट्ठकथा 7, खुद्दकनिकाय (अट्ठकथा), सुत्तपिटक (अट्ठकथा) 

यहां पर जब वृद्ध ब्राह्मण किसी से वेस्सन्तर राजा का पता पूछता है कि वेस्सन्तर राजा कहा है तो वो व्यक्ति वेस्सन्तर की पहचान इस प्रकार बताता है - "ब्राह्मण वेश (श्रेष्ठ वेश) में, आहुति डालने का सरुआ लिये, जटायुक्त वह वेस्सन्तर जातवेद को नमन कर रहे हैं"
यहां जातवेद शब्द का प्रयोग हुआ है जो कि यज्ञाग्नि के लिए प्रयुक्त होता है। तथा यहां अग्नि को सरुआ साथ में लिए नमन किया जा रहा है अर्थात् आहुति डालकर अग्नि का नमन किया जा रहा है जैसा कि अथर्ववेद के निम्न मंत्र में भी अग्नि के लिए नमन है - 

- http://www.onlineved.com/atharva-ved/?language=1&commentrator=4&mantra=71&sukt=4&kand=18 (साभार)

यहां अग्नि में सरूआ से आहुति ही दी जा रही है तथा अग्नि को वैदिक शब्द जातवेद नाम से ही पुकारा है, इस कथन की पुष्टि सांचि स्तूप पर बने एक फलक से भी होती है। जिसमें वेस्सन्तर को हवन करते हुए देखा जा सकता है - 

- The Art Of India: Traditions Of Indian Sculpture Painting And Architecture, fig. no.23

 यहां आप देख सकते है कि वेस्सन्तर सरुआ से अग्नि (जातवेद) में आहुति दे रहा है अर्थात् आहुति पूर्वक जातवेद को नमन कर रहा है। यहां सांचि स्तूप पर वेस्सन्तर जातक का चित्रण इस जातक की प्राचीनता तथा प्रामाणिकता सिद्ध करता है। अत: कोई भी नवबौद्ध इस जातक में आये अग्निहोत्र, नवमिय यज्ञ, हवन के प्रमाण को नकार नहीं सकता है। अतः इस प्रमाण से निष्कर्ष निकलता है कि जातकों के निर्माण से पूर्व ही वेद, अग्निहोत्र, यज्ञ का अस्तित्व था। 

संदर्भित ग्रंथ एवं पुस्तकें - 

1) जातक (षष्ठ खंड) - अनु. भदन्त आनन्द कौसल्यायन 

2) सुत्तपिटक (अट्ठकथा) - https://tipitaka.org/deva/

3) The Art Of India: Traditions Of Indian Sculpture Painting And Architecture - Stella Kramrisch 


Main Post:

https://nastikwadkhandan.blogspot.com/2021/10/2.html?m=1

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