बेंट द्वारका अभिलेख पर प्रकाश व नवबौद्धों का मौर्य कालीन ब्राह्मी में निर्मित फर्जी अभिलेख का भंडाफोड़!!

 पाठकों! कुछ कार्यों में व्यस्तता और आर्थिक स्थिति के चलते समय अनुसार पोस्ट नहीं हो पा रही है। कुछ नवबौद्धों ने द्वारिका वाले हमारे एक लेख में दिखाये अभिलेख को जाली या 14 वीं शताब्दी का बताया था। जिसका आधार वे लोग एक रिसर्च पेपर को दे रहे थे। उन लोगों के कारण सनातन प्रेमी व हमारे शुभचिन्तको में भ्रम भी फेलने लगा था। अत: स्थिति की गम्भीरता देखते हुए हम इन लोगों की धूर्तता को आप सबके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं। साथ में इनके एक फर्जी अभिलेख को भी दिखायेगें। इतना ही नहीं द्वारका अभिलेख पर हमारा लेख 100% प्रमाणिक व रिसर्च जनरलों के साक्ष्यों से है, ये भी सिद्ध करेगें। 


तो आइये प्रारम्भ करते हैं - 


बहुत समय पहले हमने बेंट द्वारका से प्राप्त एक अभिलेख पोस्ट किया था। जिसे एस आर राव जी ने पढा था और इसे आप निम्न लिंक पर जा कर पुन: पढ सकते हैं। 

https://aproudhindubloging.blogspot.com/2021/03/archaeological-evidence-of-sanskrit.html?m=1

यहां हमने जनरल का संदर्भ भी दिया है। 


अब इन लोगों ने इस अभिलेख को फर्जी या 14 वीं शताब्दी का बताना शुरु कर दिया है। जिसका आधार ये लोग एक जनरल में छपी निम्न लाईन को बता रहे हैं। 


 - migration and Diffusion vol 6, page 74

इस जनरल में यह लेख Ancient Dwarka : study based on recent under water archaeological investigation के नाम से छपा था। जिसके लेखक A. S. Gaur, Sundresh, sila tripati हैं। 

वास्तव में यह लेख एक अन्य रिसर्च पेपर पर आधारित था। जो कि इन्हीं तीनों लेखकों ने 2004 के आस पास किया था। यह सम्पूर्ण रिसर्च current science vol 86, no. 9 में 10 मई 2004 में छपी थी। जिसे निम्न चित्र में देखा जा सकता है। 



- current science vol 86, no. 9 page 1256 
अब इसमें जो रिसर्च की गयी थी वो द्वारका के अपतटीय offshore क्षेत्र में की गयी थी। जैसा कि इसी पेपर के निम्न चित्र में आप देख सकते हैं - 

- ibid., page no. 1257



अत: इस रिसर्च में द्वारका केे अपतटीय Offshore क्षेेेेत्रों का ही अवलोकन किया गया है। 

इनके दिखाये जनरल को भी अगर ये ठीक से पढते तो उसी में आया है कि गुजराती लिपि में मिला 8 - 14 वीं शताब्दी का अभिलेख off dwarka अर्थात् अपतटीय द्वारका क्षेत्र से है। 


- Migration and Diffusion, vol 6 , page no. 71 


यहां देखें तो यहां स्पष्ट लिखा है कि - "The discovery of rectangular stone block with gujarati script from offshore dwarka suggests that these structure are of the late medieval period" अर्थात् गुजराती लिपि में प्राप्त द्वारका के अपतटीय क्षेत्र से मिला पाषाण मध्यकालीन है। अतः यहां जिस अभिलेख के विषय में बताया है वो अभिलेख बेंट द्वारका से न होकर अपतटीय क्षेत्र से है। अर्थात् यहां मध्यकालीन (8 - 14 शताब्दी) द्वारका के समुद्र में अपतटीय क्षेत्र की संरचनाओं को कहा है। न कि अन्य स्थलों को। वास्तव में द्वारका विभिन्न कालक्रमों में समुद्र तट के आसपास के क्षेत्र में रही है। जिनमें कुछ क्षेत्र द्वारकाधीश मंदिर के पास है, कुछ क्षेत्र गोमती नदी के समीप अपतटीय क्षेत्र है, कुछ क्षेत्र गहराई में जिसे बैंट द्वारका भी कहते हैं वो है। ये क्षेत्र अलग - अलग कालों में जलमग्न भी हुए हैं। जिसमें द्वारकाधीश वाला क्षेत्र अभी भी स्थल पर है। इन क्षेत्रों में बेंट द्वारका को Proto historic और historic period का माना है। तथा द्वारका को हिस्टोरिक और अन्य स्थलों को मध्यकालीन। जिसे आप इन्हीं के द्वारा दिखाये जनरल के लेख में देख सकते हैं - 



 - Migration and Diffusion vol 6 page 74 

यहां लिखा है कि ओखामंडल के दो क्षेत्र proto historic period के हैं जिनमें नागेश्वर और बेट द्वारका है। historic period में द्वारका, बेंट द्वारका आदि हैं। कुछ मध्यकालीन है। 
Current science में प्रकाशित इसी रिसर्च में भी द्वारका के यही कालक्रम में विभाजन को देखा जा सकता है - 

- Current science vol 86 no. 9 page no. 1260

Migration and diffusion vol 6 में अन्य जगह पर भी बेट द्वारका को प्रोटो हिस्टोरिक काल का बताया है और अन्य जगहों को हिस्टोरिक और मध्यकालीन बताया है। 

- Migration and diffusion vol 6 page no. 70 

इसके अलावा एक और अन्य रिसर्च पेपर marine archaeology vol 1 के Excavation of the legendary city of Dvaraka in the arabian sea में द्वारकाधीश मंदिर के समीप द्वारका को विभिन्न काल खंडों में विभाजित किया है जो कि 1400 ईसापूर्व से 16 शताब्दी ईस्वी तक है। 



- Marine Archaeology vol 1, page no. 64 

अतः द्वारका के विभिन्न क्षेत्र विभिन्न कालखंडों के है। अब हमारे द्वारा दिखाये अभिलेख पर आते हैं जो कि अपतटीय क्षेत्र से न होकर बेट द्वारका से है जिसका कालक्रम हम ऊपर प्रोटो हिस्टोरिक पीरियड से लेकर हिस्टोरिक पीरियड तक देख चुके हैं। अतः हमारा अभिलेख 14 वीं शताब्दी के गुजराती लिपि के अभिलेख से भिन्न पूर्व ब्राह्मी और पश्च सैंधव लिपि का अभिलेख है। इस अभिलेख से पहले हम बेट द्वारका की प्राचीनता के अन्य साक्ष्य भी प्रस्तुत करते हैं। 
Marine archaeology vol 1 में ही बेट द्वारका को 1400 ईसापूर्व का बताया है - 

- Marine archaeology vol 1, page no. 75 


यहां से हडप्पन शील भी प्राप्त हुई है जो इस स्थल की प्राचीनता साबित करती है - 



- Marine archaeology vol 1 page. 90 fig 33

इसके अलावा current science जनरल के अन्य vol में A. S. Gaur ने ही बेट द्वारका से प्राप्त शंखों की कार्बन डेटिंग के आधार पर 1800 से 1600 ईसापूर्व व प्रोटो हिस्टोरिक काल से हिस्टोरिक काल तक बताया है। 





Current science vol 89 no. 6 page no. 943, 946 
 इसी जनरल के 86 वें भाग में इसी रिसर्चर द्वारा बेट द्वारका से मछली पकडने वाले कांटे की प्राप्ति का भी उल्लेख है। जिसका कालक्रम कार्बन डेटिंग से 1800 - 1600 ईसापूर्व निकाला है। 


- Current science vol 86 no. 4 page no. 514 

यही नहीं इन्ही खोजकर्ता ने एस आर राव जी के साथ मिलकर Marine archaeology vol 3 में भी बेट द्वारका को 1700 से 1500 ईसापूर्व माना है। 



- Marine archaeology vol 3 page no. 43

अत: बेट द्वारका 14 वीं शताब्दी वाले अपतटीय क्षेत्र से भिन्न 1500 ईसापूर्व की है। और हमने जिस अभिलेख की बात की थी वो भी बेट द्वारका से होने के कारण इसी कालक्रम अर्थात् 1500 ईसापूर्व का था। जिसे हमने पिछले लेख में Marine archaeology vol 6 के प्रमाण से दर्शाया था। अब हम अपने कथन की पुष्टि तथा अभिलेख की प्राचीनता व सत्यता अन्य जनरलों के प्रमाणों से भी दर्शाते हैं - 
इस अभिलेख को महान पुरातत्व विद व समुद्री क्षेत्र में भारतीय पुरातत्व के जनक एस आर राव ने खोजा था। जिसे उन्होनें सचित्र Marine archaeology vol 1 रिसर्च पेपर में प्रकाशित किया था। 

- Marine archaeology vol 1, fig 35 
इसे उन्होने North Semitic south script और ब्राह्मी स्क्रिप्ट के अक्षरों की तुलना से - महा कच्छ शह पा पढा था जिसका अर्थ समुद्र देव रक्षक या शासक था। 

- Marine archaeology vol 1 page no. 92 
इसी अभिलेख को एस आर राव जी ने Journal of marine archaeology vol 5-6 page no. 63 में संस्कृत - पर्शियन का बताया था। जिसे हमारे ब्लाग के पिछले लेख में भी बताया गया था। जिसे आप इसी लेख में दिये गये लिंक पर क्लिक करके पढ सकते हैं। इसी अभिलेख को एस आर राव ने एक और अपने लेख Writing language and religion of the Harappans and Indo aryans में भी बताया है जो कि New trends in indian art and archaeology III. 9 में प्रकाशित हुआ था। इसमें अन्य सिंधु सभ्यता की मोहरों को भी उन्होनें पढा है - 

- New trends in indian art and archaeology III. 9 page no. 202

अत: हमारे द्वारा दर्शाया अभिलेख प्राचीन व वास्तविक है जिसे विभिन्न आर्केलोजिकल जनरलों में प्रकाशित किया जा चुका था। जो कि गुजराती लिपि में प्राप्त अपतटीय क्षेत्र के अभिलेख से भिन्न है और बेट द्वारका का है। 

संदर्भित ग्रंथ एवं पुस्तकें -                    
1) New trends in indian art and archaeology III. 9 - S. R. Rao
2) Marine archaeology vol 1, January 1990 - S. R. Rao
3) Current Science vol 89 no. 6, 25 sept. 2005 - A. S. Gaur, Sundaresh, Vardhan patankar
4) Current Science vol 86 no. 4, 25 feb. 2004 - A. S. Gaur, Sundaresh
5) Marine archaeology vol. 3, July 1992 - S. R. Rao and A. S. Gaur
6) Migration and diffusion vol 6 ,  Number 21,2005 - A. S. Gaur, Sundaresh, Sila tripati
7) Current Science vol. 86 no. 9, 10 may 2004 - A. S. Gaur, Sundaresh,Sila tripati
8)New trends in indian art and archaeology III. 9



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