नव बौद्धों के फर्जी अभिलेख का भांडा फोड़

 आज हम इन नवबौद्धों के एक फर्जी प्रकाशित अभिलेख का भंडाफोड करते हैं जिसे आप यहां पर देख सकते हो।

http://www.tpsgnews.com/%E0%A4%87%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8/-Copper-plate/20/2471


 असल में गुप्त वंश के राजाओं के नामों को प्राकृत में बताने के लिए इन्होने एक ब्राह्मी लिपि के अभिलेख का प्रयोग किया था जिसकी लिपि गुप्त न होकर मौर्य कालीन थी। जिसे निम्न चित्र में देखें - 


यहां चिह्नित अभिलेख को देखिये जिस पर वेकमादत लिखा हुआ है। 
दरअसल यह अभिलेख पूरा का पूरा फर्जी है। इसे एक तथाकथित भाषा वैज्ञानिक चालुक्य विक्रमादित्य का बताता है और दूसरा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का। उनके नामों को प्राकृत भाषा का दर्शाने के लिए इस फर्जी अभिलेख का प्रयोग किया है। यहां जो वेकमादत लिखा है। वास्तव में वो नीचे दिये गये फर्जी अभिलेख से काटकर दिया है - 


 इसे तथाकथित भाषा वैज्ञानिक ने अपनी फेसबुक पोस्ट से भी शेयर किया था। इस अभिलेख की लिपि न तो गुप्त कालीन है और न ही चालुक्य कालीन। 

साथ में यह अभिलेख किसी भी प्रभावी रिसर्च पेपर में भी प्रकाशित नहीं हुआ है। फोटों में आप देख सकते हो कि यह अभिलेख किसी के घर की बैडशीट या कपड़े पर रखा हुआ है। अर्थात् यह न तो पुरातत्व स्थल पर है और न ही किसी संग्रहालय में है। अत: घर पर ही बनाया हुआ फर्जी अभिलेख है। इसके फर्जी होने के अन्य कारण - 

फर्जी ताम्र अभिलेख.. (राजेंद्र प्रसाद द्वारा पोस्ट किया हुआ) 

ये अभिलेख देखने में ब्राह्मी लिपि का लगेगा किंतु इसकी भाषा नवीन है, अत: यह अधिक प्राचीन नही है.. साथ ही ये फर्जी है ये जानने से पहले इसका लिप्यांतरण पढ लीजिये - 

आदेश


आज फेगन सद आठ मंगलवार के 

हम सेरोपग वनंद के आदह अदतह

क मेगन ललसर जेनक जजिर 

कटुया (भनण?) आयोठय क

हवगदिर महठत ह रुनक स?य

गंगादाम देस क वनत लर जजिर

टुय का भवय रेय बनवाय जय


वेकमादतय

इसके फर्जी होने के हेतु - 

1) जहां अक्षर लिखे हैं वहां अक्षर सम्पादन के लिए अदृश्य या हल्की लाईने खीची गयी है जिससे अक्षर की कृत्रिमता अति स्पष्ट है.. 

2) अभिलेख में कोई भी संवंत प्रयोग नहीं है प्राय: शासक प्रचलित सम्वंत का प्रयोग करते हैं.. 

3) अभिलेख में श्री, सिद्धम् आदि जैसे मंगलवाचक शब्द नही है 

4) कोष्ठक का प्रयोग अभिलेख की नवीनता को पुष्ट करता है.. 

5) बनवाया, हम, आठ जैसे नवीन भाषायी प्रयोग अभिलेख को बहुत नवीन और फर्जी सिद्ध करता है.. 

अत: अभिलेख फर्जी और नवीन है...

साथ ही हम ये भी पूछेंगे कि ये अभिलेख किस प्रभावी जनरल से प्रकाशित है, इसका पुरातात्विक स्थल क्या है? ये किस संग्रहालय या सरकारी व विश्वविद्यालय आदि प्रभावी संस्थान के पास है? 

इस प्रकार फर्जी तथ्यों और साक्ष्यों को गढ कर नवबौद्ध इतिहास का इतिकांड तो कर ही रहे हैं तथा साथ ही दूसरों पर गलत आरोप लगाकर धूर्तता भी करते हैं। अतैव सावधान रहिये। 



Credits: nastikwad khandan blogspot 

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