क्या हिंदुओं ने मुर्ति, मंदिर और प्रतीक कला बौद्धों से चुरायी थी?
आजकल कुछ मूर्खों द्वारा अनेकों झूठी और फर्जी पोस्टों द्वारा ये दुष्प्रचार किया जा रहा है कि हिंदुओं ने बौद्धों की नकल करके चतुर्मुख ब्रह्मा प्रतिमा, सुदर्शन चक्र, कृष्ण - विष्णु प्रतिमा, त्रिशुल, मंदिरों का निर्माण किया था। इसी पोस्ट में हम हिंदू प्रतिमाओं, मंदिरों और प्रतीकों की प्राचीनता सिद्ध करेगें तथा साथ ही साथ यह भी सिद्ध करेगें कि हिंदू प्रतीक बौद्धों के समान या उससे भी अधिक प्राचीन है। आइये नवभौंदुओं के कुछ झूठों का भंडाफोड करते हैं -
(1) क्या धम्म चक्र से सुदर्शन चक्र बनाया गया -
नवभौंदूओं का यह आक्षेप रहता है कि हिंदुओं ने धम्म चक्क से सुदर्शन चक्र बना लिया अर्थात् धम्म चक्क की चोरी सुदर्शन चक्र के रुप में की है।
खंडन - हम अपने इसी ब्लाग पर अभिलेखों के द्वारा वासुदेव और हेलोडोरस के वासुदेव गरुड स्तम्भ के द्वारा कृष्ण और विष्णु की प्राचीनता सिद्ध कर चुके हैं अत: धम्म चक्क से सुदर्शन चक्र बनने का प्रश्न ही नहीं उठता है।
फिर भी हम यहां दो प्रमाण प्रस्तुत कर रहें हैं जिससे सिद्ध होता है कि धम्म चक्क (अशोक) से पूर्व चक्र का आयुध के रुप प्रयोग होता था -
यह चित्र मिर्जापुर की एक चट्टान से लिया गया है। इस चित्र को neumayer erwin ने अपनी पुस्तक chariots in the chalColithic rock art in India में दिया है। इस चित्र में एक यौद्धा किसी युद्ध क्षेत्र में आयुध के रुप में चक्र का प्रयोग करते हुए दिख रहा है। यह शैल चित्र लगभग 800 ईसा पूर्व पुराना है।
यह चित्र मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले की एक शैल से लिया गया है। इस चित्र को सर्वप्रथम V. S. Wakankar ने 1973 में अपने पीएचडी के शौध प्रबंध के दौरान प्रस्तुत किया था। इस चित्र का कालक्रम साथ में दी गई ब्राह्मी लिपि के आधार पर 300 - 200 ईसापूर्व का माना है। इस शैल चित्र का संदर्भ अपनी भारत के प्रागैतिहासिक शैल चित्रों की पुस्तक में 1992 में neumayer ने भी दिया है। इस शैल चित्र में तीन मानवाकृति हैं जिनमें सबसे बांये तरफ की आकृति के हाथ में हलायोध अर्थात् हल जैसी आकृति है, मध्य की आकृति सबसे बडी है और उसके दांये हाथ में चक्र जैसी आकृति है। सबसे दांये आकृति के हाथ में एक छत्र है जो कि मध्य आकृति के ऊपर छाया करता हुआ दिख रहा है। इन तीनों आकृतियों के मस्तक पर तिलक भी दर्शाया गया है। यदि इन आकृतियों के हाथों के चक्र, हल की तुलना की जाये तो यह आकृतियां श्रीकृष्ण और बलराम की सिद्ध होती है। इस एक ही चित्र से कृष्ण बलराम की प्राचीनता के साथ - साथ चक्र की भी प्राचीनता सिद्ध है। इससे सिद्ध है कि मौर्यकाल से ही वासुदेव - बलराम का पूजन प्रसिद्ध था।
उपरोक्त प्रमाण से सिद्ध है कि धम्म चक्क (अशोक काल) से बहुत पहले चक्र का आयुध रुप में प्रयोग होता था। अतः सुदर्शन चक्र को धम्म चक्क की नकल नहीं कहा जा सकता है अपितु धम्म चक्क को सुदर्शन चक्र की नकल कह सकते हैं।
(2) क्या त्रिरत्न से त्रिशुल बना?
खंडन - त्रिशुल का चिह्न तथा आयुध रुप में प्रयोग प्राचीन शैल चित्रों में है जो कि बुद्ध से भी हजारों वर्ष प्राचीन है। अनेकों शैल चित्र कोटा-बांरा-बूंदी के हाडौती क्षेत्र में ऐसे प्राप्त हुए हैं जिनमें दैवीय आकृतियों के पास त्रिशुल है। इनका सम्पूर्ण विवरण आप निम्न न्यूज लिंक में पढ सकते हैं।
https://www.google.com/amp/s/m.patrika.com/amp-news/kota-news/goddess-worship-start-from-25-thousand-years-ago-in-kota-india-1-3544664/
इसी तरह भीमबेटका की गुफा से भी एक शैल चित्र प्राप्त हुआ है, जिसके हाथ में त्रिशुल जैसी आकृति गौर से देखने पर दिखती है।
इसी प्रकार अनेकों प्राचीन सिक्कों पर त्रिशुल है, उन्हीं में से एक प्राचीन ओदुम्बर सिक्का जो कि 300 - 200 ईसापूर्व के मध्य है।
भारत की The journal of numismatic society of india के 1942 में vol. 4 में छपा था।
जिसका चित्र और रेखाचित्र नीचे देखें -
इस सिक्के के एक तरफ परशा सहित त्रिशुल का चित्रण है तथा दूसरी तरफ गुम्बदाकार मंदिर या शिवालय का चित्रण है। यह सिक्का त्रिशुल की प्राचीनता के साथ - साथ ईसापूर्व हिंदू मंदिर की प्राचीनता भी सिद्ध करता है। अत: न केवल त्रिशुल अपितु मंदिर भी बौद्ध प्रतीकों से प्राचीन है। शैव के साथ - साथ वैष्णव मंदिरों की भी ईसापूर्व प्राचीनता हेलोडोरस के गरूड स्तम्भ लेख तथा पास ही स्थित ढांचे से हो जाती है।
इसी प्राचीन सिक्कों के जर्नल में इस सिक्के पर टिप्पणी देते हुए सम्पादक ने लिखा है कि "प्राचीन हिंदू मंदिर मीनाराकार में होने से पहले गुम्बदाकार में होते थे।"
यदि हम इस सिक्के पर बने मंदिर का वास्तु देखे तो वो कुछ - कुछ सौहागोरा के ताम्र अभिलेख पर बने कोषागार भवनों जैसा है -
अत: इन प्रमाणों से सिद्ध है कि न केवल त्रिशुल अपितु मंदिर भी प्राचीन है। अत: त्रिशुल किसी भी तरह त्रिरत्न से नकल नहीं किया गया है अपितु सम्भवतः त्रिरत्न, त्रिशुल की नकल हो!
(3) क्या स्तूप से शिवलिंग की नकल की गई है?
खंडन - अनेकों मूर्ख वैज्ञानिक और इतिकांडकार कहते हैं कि हिंदूओं ने बौद्ध स्तूपों की नकल करके शिवलिंग बना लिये थे। जबकि स्तूपों और शिवलिंग की आकृतियों में बहुत अंतर है। शिवलिंग एक स्वतंत्र लिङ्गाकृति है। इसका सम्बन्ध लिङ्ग पूजा से है तथा स्तूप एक ढेर मात्र है जिसे गुम्बदाकार दिया जाता है। यहां हम एक शिवलिंग का चित्र दे रहें है जिसे गुडीमलम् लिङ्ग के नाम से जाना जाता है, जिसकी आयु T. S. Gopinath rao ने 200 ईसापूर्व तथा wendy doniger ने 300 ईसापूर्व दी है। अतः हम इस शिवलिंग को 300 - 200 ईसापूर्व के मध्य रख सकते हैं।
इस प्रमाण से मौर्यकाल में शिवलिंग पूजा की प्राचीनता सिद्ध होती है तथा शिवलिंग किसी भी प्रकार से स्तूप की नकल नहीं है।
(4) क्या बुद्ध से विष्णु/कृष्ण की मुर्ति का निर्माण हुआ?
खंडन - यदि हम बुद्ध की मुर्तियों का काल देखें तो अधिक से अधिक बुद्ध की मुर्तियां कनिष्क कालीन है। इससे पूर्व के स्तूपों में शुंग काल तक जहां भी बुद्ध को दर्शाया है, वहां बुद्ध की मुर्ति न बनाकर प्रतीकों जैसे - अग्नि स्कंध, पीपल और चक्क के माध्यम से दर्शाया है। सम्राट अशोक ने भी कोई भी बौद्ध मुर्ति बनवाने का अपने अभिलेख में उल्लेख नहीं किया है, न ही किसी बौद्ध प्रतिमा का कोई विवरण अपने अभिलेखों में दिया है अतः बुद्ध मुर्तियों का निर्माण कनिष्क काल से शुरु होना माना जा सकता है। किंतु इसी पोस्ट में 300 ईसापूर्व के गुडीमलम् लिंग और शैव मंदिर से हिंदू प्रतिमाओं, मंदिरों का समय बौद्ध मुर्तियों से प्राचीन सिद्ध होता है। इसी ब्लाग पर हमने कृष्ण की प्राचीन मुर्तियों और अभिलेखीय साक्ष्यों पर क ई पोस्टें प्रस्तुत की है जो भी बुद्ध प्रतिमाओं से पूर्व वैष्णव प्रतिमाओं को सिद्ध करता है। हेलोडोरस का गरुड स्तम्भ लेख और हाथीबाडा का वासुदेव बलराम की पूजन शिला लेख भी ईस्वी पूर्व वैष्णव प्रतिमाओं के अस्तित्व को सिद्ध करता है। यहां हम मौर्यकालीन चतुर्भुज विष्णु प्रतिमा का चित्र दे रहें हैं जो कि मल्हार से प्राप्त हुई है। इसके दंड पर लिखे ब्राह्मी लेख के अनुसार इस प्रतिमा का निर्माण पर्णदत्त की भार्या भारद्वाज ने करवाया था। 
अतः वैष्णव प्रतिमाओं का निर्माण बौद्ध प्रतिमाओं से काफी समय पूर्व हो गया था। इसीलिए बुद्ध से विष्णु बने किसी भी तरह कहना उचित नहीं है।
(5) क्या चतुर्मुख बुद्ध प्रतिमा से चतुर्मुखी ब्रह्मा की मुर्ति का निर्माण हुआ?
खंडन - कुछ मूर्ख इस बात पर एक मुर्ति का चित्र देते हैं तथा उस मुर्ति के चित्र की तुलना ब्रह्मा के चित्र से करते हैं। यहां ये भौंदू खुद ही इतने कन्फ्यूज हैं कि एक तरफ तो चार सर या चार हाथों को पाखंड मानते हैं तो वहीं दूसरी तरफ बुद्ध के भी चार सिर बता देते हैं।
हम यहां पहले मूर्खों द्वारा दिखायी जाने वाली चतुर्मुख मुर्ति की पोल खोलते हैं।
मुर्खों द्वारा दर्शायी जाने वाली यह प्रतिमा कोई प्राचीन प्रतिमा नहीं है और न ही ये भारत के किसी मंदिर में है। ये प्रतिमा ज्यादा से ज्यादा 2 -3 साल ही पुरानी होगी तथा यह प्रतिमा ओनलाईन बेची जाती है अर्थात् कोई भी इस प्रतिमा को ओनलाईन ओडर पर खरीद सकता है। इंडोनेशिया की lotus sculpture नामक ओनलाईन साईट से यह प्रतिमा खरीदी जा सकती है। उस साईट का निम्न स्क्रीन शॉर्ट देखें -
यहां लिखा है कि ये वाली बैच चुके हैं किंतु ओडर करने पर ऐसी ही प्रतिमा बनाकर दी जायेगी, अतः ये कोई ऐतिहासिक प्राचीन प्रतिमा न होकर विक्रय करने वाली प्रतिमा है।
यह इंडोनेशियाई प्रतिमा वहां बुद्ध नाम से नहीं बल्कि ब्रह्मा नाम से बैठी जाती है जिसे इसी साईट पर देखें -
इस प्रतिमा के विस्तृत विवरण में भी इसे ब्रह्मा की प्रतिमा ही बताया है -
अतः यह नवीन प्रतिमा भी बुद्ध की न होकर ब्रह्मा की ही प्रतिमा है। ब्रह्मा की भारत में गुप्तकाल तक की अनेकों प्रतिमायें प्राप्त हुई हैं तथा हाल ही में हस्तिनापुर सर्वेक्षण में ब्रह्मा की एक चतुर्मुख प्रतिमा भी प्राप्त हुई है, जिसका चित्र हमें हमारे एक मित्र ने भेजा था तथा इसके बारें में अमर उजाला में भी छपा था।
अतः बुद्ध प्रतिमा से चतुर्मुख ब्रह्मा नहीं बने हैं अपितु चतुर्मुख ब्रह्मा से चतुर्मुख बुद्ध बनाये जा रहें है।
इन सब समीक्षाओं से निष्कर्ष निकलता है कि मूर्खों द्वारा लगाये जा रहे, ये सब आरोप निराधार हैं।
संदर्भित ग्रंथ एवं पुस्तकें -
1) दक्षिण कोसल के सांस्कृतिक कला केंद्र खरोद एवं मल्हार - भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण रायपुर मंडल (पोस्टर बुकलेट)
2) Vrisnis in acient literature and art - Vinay kumar gupta
3) The Hindus : an alternative history - Wendy doniger
4) Chariots in the ChalColithic rock art in India - Neumayer Erwin
5) The journal of numismatic Society of India (1942) vol. 4
6) Elements of hindu iconography vol 2. Part 1 - T. A. Gopinatha Rao.
Main Post:
https://nastikwadkhandan.blogspot.com/2020/05/blog-post_30.html?m=1
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