मांग जाति से भेदभाव

 महाराष्ट्र में कुछ जातियां जन्मना जातिव्यवस्था या अन्य कारणों से हीन मानी जाती है। उनसे भेदभाव भी होता है। हम या कोई भी निष्पक्ष अध्येता जातिवाद, छुआछूत से इनकार नहीं कर सकता है। किंतु समय - समय पर इसी समाज में अनेकों समाज सुधारकों ने जन्म लेकर इस भेदभाव के खिलाफ अभियान चलाया है। 


लेकिन आजकल जातिवाद, भेदभाव और छुआछूत करने का आरोप कुछ गिनी चुनी जातियों जैसे - ब्राह्मण, राजपूत, जाट, गुर्जर, वैश्य, कुशवाहा आदि पर ही मढा जाता है। एक वर्ग विशेष आजकल जब चाहे जिसे जातिवादी होने का तमगा दे देता है। किंतु असली सच्चाई सभी से छिपाई जाती है और वह ये है कि जातिवादी व्यवस्था का फायदा, उस वर्ग ने भी खूब उठाया है जो आज खुद की गिनती सबसे शोषित जातियों में करती है। 


यहां हमारा उद्देश्य किसी जाति की निंदा या किसी जाति, समाज को जातिवादी ठहराने की नहीं है। यहां हम ये बताना चाहते हैं कि पूर्व कालों में जातिवाद कुछ ही जातियों द्वारा नहीं किया गया था, लगभग सभी जातियों ने एक दूसरे के प्रति भेदभाव किया था। 


अब यहां हम उस जाति की बात करते हैं, जिसकी गिनती आजकल शोषित वर्ग में होती है। किंतु एक समय था जब इसी जाति ने अपने जातिय कर्मों पर दूसरी जाति का अतिक्रमण होता देख, दूसरी जाति के खिलाफ तत्कालीन प्रशासन से शिकायत तक की थी। 


ये जाति कोई और नहीं बल्कि वो जाति है, जिसमें बाबा साहेब अम्बेडकर जी का जन्म हुआ था। अर्थात् महार जाति। 


इस महार जाति ने जिस दूसरी जाति के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी, वो जाति है - मांग। 


तो हुआ ऐसा था कि महार जाति को तत्कालीन पेशवा सरकार के दौरान कुछ विशेष अधिकार मिले हुए थे। इनमें से कुछ धार्मिक और समारोहगत थे। जिन्हें जातिय परम्परा से केवल महार ही करते आ रहे थे। लेकिन धीरे - धीरे मांग जाति भी वो सब कार्य करने लगी तो महारों को ये सब पसंद नहीं आया। क्योंकि महार लोग, उस समय मांगों को खुद से हीन समझते थे। इसलिए महारों ने मांगों की शिकायत पेशवा सरकार से की। जिसके बाद सरकार ने जिलाधिकारियों को आदेश दिये और महारों को अपनी लम्बी जातिय परम्परा के अनुसार व्यवहार करने की छूट मिली, जो मांग ये सब कर रहे थे, उन पर रोक लगी ताकि महारों को परेशानी न हो। 


वे कौनसे कार्य और अधिकार थे, जिन्हें महार लोग नहीं चाहते थे कि मांगों को मिले और उसके विरुद्ध उन्होने शिकायत की थी। उन्हें आप निम्न स्क्रीन शॉट में पढ सकते हैं - 


   - Caste system, untouchability and Depressed, page no. 60


इनमें से कुछ का भावार्थ यह है - 


- दशहरे के शांति अवसर के दौरान महार लोग पेडा (मिठाई) और भैंस को लिया करते थे किंतु यही कार्य मांग जाति के भी लोग करने लगे थे। तो महारों की अपील थी कि मांगों को ये सब करने से रोका जाये। 


- सबसे महत्वपूर्ण है कि महारों की बारात घोडे पर निकला करती थी। मांग जो उनसे हीन जाति थी, उनकी बारात बैल पर निकला करती थी किंतु मांग लोग भी घोडे पर बारात निकालने लगे थे। इस बात की शिकायत महारों ने पेशवा से की कि मांगों की बारात पुरानी परम्परा अनुसार बैल पर ही निकलनी चाहिए, घोडे पर नहीं और महारों की बारात घोडे पर ही निकलेगी। 


इस प्रकार अन्य बिंदुओं को आप स्क्रीन शॉट में पढ सकते हैं। इससे पता चलता है कि मांग जाति के प्रति महार जाति का बहुत भेदभाव युक्त रवैया था। यहां तक की महार लोग उस समय मांगों का घोडे पर चढना भी गलत मानते थे। जबकि आजकल लोग अपने ऊपर हुए भेदभावों को गिना देते हैं लेकिन खुद के द्वारा किये गये भेदभावों को भूल जाते हैं। 


अगर हमें जातिवाद, भेदभाव, छुआछूत खत्म करना है तो पहले खुद के समाज के अंदर से इसे खत्म करना चाहिए, तब दूसरों पर उंगली उठानी चाहिए। आज भी कई सारी ऐसी जातियां है जो खुद तो अपने से छोटी जातियों से भेदभाव करती है लेकिन अवसर मिलने पर खुद को सबसे ज्यादा शोषित भी दर्शाती है। 


संदर्भित ग्रंथ एवं पुस्तकें - 


1) Caste system, Untouchability and the Depressed - H. Kotani 


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https://nastikwadkhandan.blogspot.com/2020/12/blog-post.html?m=1

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