वासुदेव भ्राता बलराम के चित्रांकन एवं स्थापत्य की प्राचीनता!!!

 नमस्ते पाठकों! आप लोगों ने ब्लाग के माध्यम से श्री कृष्ण जी के चित्रांकन एवं स्थापत्य (मुर्ति आदि) की प्राचीनता के बारे में जाना था। ये सब बुद्ध की प्रतिमा निर्माण से भी पूर्व और समकालीन थे। इस पोस्ट में हम अपना विषय मात्र बलराम जी के साथ ही केंद्रित करेगें हांलाकि हमने श्री कृष्ण सम्बंधित लेखों में भी बलराम जी के प्रमाण दिये थे किंतु यहां कुछ विशेष साक्ष्य प्रस्तुत किए जा रहे हैं। 


(1) मथूरा से प्राप्त लखनऊ संग्रहालय में सुरक्षित बलराम की प्रतिमा - 


- The Life Of Krishna In Indian Art, fig. 4


 यह प्रतिमा बलराम जी की ज्ञात प्राचीनतम प्रतिमाओं में से एक है। इसको शुंगकालीन लगभग 200 ईसापूर्व प्राचीन माना गया है। निश्चय ही यह बुद्ध की प्रतिमाओं से प्राचीन है। इसमें बलराम जी नागछत्र के साथ और हल व मूसल धारण किये हैं। बलराम जी को नागराज (शेष नाग) व कृषि देव भी माना जाता है। 


(2) वाराणसी भारतीय कला भवन में सुरक्षित सिंह मुख हलधारी बलराम जी की प्रतिमा - 


- प्राचीन भारतीय मुर्ति विज्ञान (प्रारम्भ से गुप्तकाल तक की ब्राह्मण, बौद्ध एवं जैन धर्मों की प्रमुख मुर्तियों का अध्ययन), चित्र सं. 68 


यह प्रतिमा खंडित अवस्था में है। इसका भी समय लगभग 200 ईसापूर्व माना गया है। इसमें बलराम नागछत्र व सिंहमुख हल धारण किये हैं। 

बलराम जी के सिंहमुख हल का उल्लेख हरिवंश पुराण में भी आता है - 


- हरिवंश पुराण, विष्णु पर्व, 121.100



(3) तुमैत (मध्यप्रदेश) से प्राप्त बलराम की प्रतिमा - 


- Many Heads, Arms And Eyes (Origin, Meaning And Form Of Multiplicity In Indian Art), Pl. 16.14 - 16.15


यह प्रतिमा मध्यप्रदेश के तुमैत से प्राप्त हुई थी। यह लगभग 100 ईसापूर्व प्राचीन है। इसमें भी बलराम जी हलायुध और मूसल धारण किये हुए हैं। उनके पीछे नागछत्र भी देखा जा सकता है। 


(4) मथूरा संग्रहालय में सुरक्षित एक कुण्डली द्विभुज बलराम जी की प्रतिमा - 


- प्राचीन भारतीय मुर्ति विज्ञान (प्रारम्भ से गुप्तकाल तक की ब्राह्मण, बौद्ध एवं जैन धर्मों की प्रमुख मुर्तियों का अध्ययन), चित्र सं. 71


यह मुर्ति 1 - 2 सदी ईस्वी प्राचीन है। इस प्रतिमा में बलराम जी मद्य के पात्र के साथ हैं। बलराम जी की पहचान हल मूसल के अलावा मद्य पात्र से भी होती है। इस प्रतिमा का एक रेखाचित्र वासुदेव शरण अग्रवाल जी ने अपनी पुस्तक में इस प्रकार दिया है - 


- Indian Art (a history of indian art from the earliest times up to the third century A.D.), fig. 156


इस प्रतिमा से हम जान सकते हैं कि कुषाण काल जब बुद्ध प्रतिमाओं के बनने की शुरुआत थी तब भी बलराम जी व भागवत मत से सम्बंधित प्रतिमाओं का निर्माण होता था। 


(5) मथूरा संग्रहालय में सुरक्षित कुषाण कालीन वासुदेव संग बलराम प्रतिमा - 


- Society, Religion And Art Of The Kushana India, A Historico - Symbiosis, PL. VII, fig. 11


यह प्रतिमा 2 सदी ईस्वी प्राचीन है। इस प्रतिमा में वृष्णिवीरों का अंकन है। मुर्ति का कुछ भाग नष्ट प्रायः है। इसमें बलराम जी को कृष्ण जी के कंधे से जुडा हुआ दर्शाया है। यहां बलराम जी की पहचान सर्प छत्र और मद्यपात्र से होती है। 


(6) मथूरा से प्राप्त और Nasli and Alice Heeramaneck Collection में सुरक्षित बलराम की प्रतिमा - 


- Indian Sculpture Vol 1, fig. $59, page no. 183

बलराम जी की यह प्रतिमा 100 ईस्वी प्राचीन है। इस प्रतिमा का अधिकांश भाग खंडित है। किंतु हस्तों की अनुमानित स्थिति के कारण हम इस प्रतिमा की तुलना उपरोक्त दर्शायी एक कुण्डली द्विभुज बलराम प्रतिमा से कर सकते है। यह प्रतिमा बलराम जी के एक हाथ में मद्य पात्र तथा दूसरे हाथ को ऊपर उठाये हुए दर्शाती है। 

(7) मथूरा से प्राप्त राजकीय संग्रहालय लखनऊ में सुरक्षित बलराम की प्रतिमा - 


- Indian Journal Of Archaeology Vol 5 No. 1 (Jan 2020 - April 2020), fig no. 135, Page no. 305


शेषनाग छत्रधारी बलराम की यह खंडित प्रतिमा 100 - 200 ईस्वी प्राचीन है। यह प्रतिमा सप्त फण युक्त नाग छत्र से सुशोभित है। एक हाथ अन्य प्रतिमाओं के समान ऊपर है। 


(8) राजकीय संग्रहालय लखनऊ में सुरक्षित बलराम की सिंहमुख हल एवं मूसलधारी प्रतिमा - 


- Indian Journal Of Archaeology Vol 5 No. 1 (Jan 2020 - April 2020), fig no.136, Page no. 306 


यह प्रतिमा नीचले हिस्सों से खंडित है। सम्भवतः यह नेमिनाथ की किसी प्राचीन प्रतिमा के साथ खडे बलराम व कृष्ण का एक भाग होगी। अधिकतर जैन व बौद्ध प्रतिमाओं में हिंदू देवों को बुद्ध या तीर्थंकर के अनुचारी के रूप में दर्शाया जाता है। इसी लेख में नेमीनाथ जी के साथ बलराम - कृष्ण की प्रतिमाओं को आप देखेगें। यह प्रतिमा सिंहयुक्त हल व मूसल से युक्त है। यह लखनऊ संग्रहालय में Antiquity No. S.758 से नामांकित है। यह लगभग 100 - 200 ईस्वी प्राचीन है। 

कुछ लोग यहां बलराम की प्रतिमाओं की पहचान पर संदेह कर सकते हैं। हालांकि बलराम की प्रतिमाएं हल, मूसल, नागछत्र, मद्यपात्र के द्वारा पहचानी जा सकती है किंतु इन स्थानों से श्रीकृष्ण की भी प्रतिमाऐं प्राप्त हुई हैं। अतः इन प्रतिमाओं के बलराम रह जाने पर कोई संदेह शेष नहीं रहता है। उदाहरण के लिए आप कंकाली टीला, मथूरा से प्राप्त वासुदेव की 100 ईस्वी प्राचीन प्रतिमा को देखें - 


-Indian Journal Of Archaeology Vol. 4 No. 4, fig. 464, Page no. 517 


यह प्रतिमा गदा और चक्र धारण किये हुए है। जिससे इसे श्री कृष्ण के रुप में पहचाना जा सकता है। अतः भागवत मत व कृष्ण संग बलराम की प्राचीनता आप सब अनुमान कर सकते हैं। 

(9) सांची के समीप चांदना से प्राप्त बलराम की प्रतिमा - 


- South Asian Studies, 17: 1, fig. no. 13, Page no. 68 


यह प्रतिमा 100 ईसापूर्व प्राचीन है। यह अत्यधिक खंडित अवस्था में है। इसमें बलराम के घुटनों से नीचला हिस्सा खंडित है। एक हाथ में खंडित हुआ हल है तथा दूसरा हाथ पूरी तरह से नष्ट है। सिर पर नागछत्र है। इस प्रतिमा के विषय में इसी शोध पत्र में यह लिखा है - 


- South Asian Studies, 17: 1, Page no. 69


इस प्रतिमा से ज्ञात होता है कि सांचि में जब बौद्ध मत का प्रभाव था तथा स्तूपों पर कलाकृतियां उकेरी जा रही थी। उस समय भी बलराम का कृषि देव व शेषनाग के रूप में पूजन होता था। 


(10) मथूरा से प्राप्त नेमिनाथ की प्रतिमा में बलराम जी का अंकन - 

- Indian Journal Of Archaeology Vol. 4 No. 4, fig. 523, Page no. 574

यह प्रतिमा मथूरा से प्राप्त 200 ईस्वी प्राचीन है। इसमें मध्य में प्रमुख देव के रुप में नेमिनाथ तथा दोनों तरफ अनुचरों के रुप में श्री कृष्ण को दर्शाया गया है। जैसा कि हमने पूर्व में कहा था कि हिंदू देवों को जैन - बौद्ध प्रतिमा कला में तीर्थंकर और बुद्ध (बोधिसत्वों) का अनुचर रुप में दर्शाया जाता है। जैन परम्परा में बलराम जी व कृष्ण जी को नेमिनाथ का छोटा भाई बतलाया गया है। जैन शास्त्र नेमिनाथ को बलराम व कृष्ण से श्रेष्ठ दर्शाते हैं जो कि स्पष्ट दर्शाता है कि भागवत मत से जैन मत की श्रेष्ठता स्थापित करने का एक प्रयास था। इस प्रतिमा में बलराम जी व कृष्ण जी दोनों हाथ जोडकर खडे हैं तथा बलराम जी के शीर्ष पर नाग छत्र देखा जा सकता है। 

(11) मथूरा से प्राप्त एक और अन्य नेमिनाथ की प्रतिमा के साथ बलराम - 

- Indian Journal Of Archaeology Vol. 4 No. 4, fig.559, Page no. 607 

यह प्रतिमा भी मथूरा से प्राप्त 400 ईस्वी प्राचीन है। उपरोक्त प्रतिमा के समान यहां भी बलराम व कृष्ण जी को नेमिनाथ का अनुचारी दर्शाया गया है। इस प्रतिमा में अंकित बलराम जी सर्पछत्रयुक्त और मद्य पात्र धारण किये हुए हैं। 

(12) नेमिनाथ जी की अन्य प्रतिमा में भी बलराम का अंकन -


- The Splendour Of Mathura Art & Museum, fig. no. 21, page no. 82

ये प्रतिमा मथुरा संग्रहालय में 34.2488 क्रमांक से सुरक्षित है। इसमें उपरोक्त प्रतिमाओं की तरह ही बलराम जी नेमिनाथ के अनुचर रुप में उपस्थित हैं। कुषाणकालीन इस प्रतिमा में नेमिनाथ के साथ - साथ बलराम जी सर्पछत्र युक्त हैं। 
इन प्रतिमाओं से सिद्ध होता है कि कृष्ण एवं बलराम की इतनी प्रबल मान्यता थी कि जैन बौद्ध भी उन्हें अपनाने से अपने आप को नही रोक सके थे। इससे बलराम एवं कृष्ण के प्राकार की जिन मुर्तियों के समान ही प्राचीनता सिद्ध होती है। 

(13) दक्षिण भारत में बलराम का प्रतिमांकन - 


- Many Heads, Arms And Eyes (Origin, Meaning And Form Of Multiplicity In Indian Art), Pl. 18.1 

यह प्रतिमा दक्षिण भारत के आंध्रप्रदेश के कोंडामोटू से प्राप्त हुई थी। यह लगभग 400 ईस्वी प्राचीन है। इस प्रतिमा में नरसिंह भगवान के साथ पंचवृष्णि वीरों का अंकन है। जिसमें मद्य पात्र ग्रहण किये हुए बलराम जी को आसानी से पहचाना जा सकता है। इस प्रमाण से दक्षिण भारत में भी बलराम व वृष्णिवीरों की मान्यताओं का ज्ञान होता है। हालांकि प्राचीन संगम साहित्यों में भी जगह - जगह बलराम और वासुदेव का उल्लेख है। 

(14) मौर्य और पश्च मौर्यकालीन सिक्कों पर बलराम जी का चित्रांकन - 


- Emergence of Visnu and siva Images in india: Numismatic and Sculptural Evidence (PPT), page (#app. with cover 24) 

हम बलराम व कृष्ण का मुद्राओं पर प्राचीन चित्रांकन पूर्व के लेखों में दे चुके हैं। यहां भी हम कुछ सिक्कों के चित्र दे रहे हैं। ये सिक्के wilfried pieper ने Numismatic Digest 38 , pp 36 - 59 में प्रकाशित किये थे। हम Osmund Bopearachchi जी के एक PPT से यह सब चित्र दिखायें हैं। ये लगभग मौर्य से पश्च मौर्यकाल तक हैं। इनमें हलधर बलदेव जी को देखा जा सकता है। 

(15) हिंद - शक शासक Maues के सिक्कों पर बलराम का चित्रांकन - 

- South Asian Studies 19:1, fig no. 16, page no. 4

यदि आप सिक्के का और स्पष्ट चित्र देखना चाहते हैं तो यहां देखें - 


- Iconography Of The Hindus, Buddhists & Jains (Proceedings of the national conference on January 8 & 9, 2016), fig. 2, Page no. 74

आप सब लोग Agathocles के सिक्कों पर बलराम व कृष्ण से परिचित ही होगें। यहां हमने हिंद शक शासक maues के सिक्के के प्रमाण दिया है। यह सिक्का 70 ईसापूर्व प्राचीन है। यह उत्तरी सिंध क्षेत्र से प्राप्त हुआ था। सिक्के में बलराम हलायुध व मूसलायुध धारण किये हुए हैं। 
अन्य प्रमाण 
(16) मथूरा से प्राप्त एवं Norton Simon संग्रहालय में सुरक्षित बलराम की प्रतिमा - 


- Mathura: the cultural heritage, Pl. 36.IX.A

यह प्रतिमा 100 ईस्वी प्राचीन है। इसमें बलराम जी नाग छत्र यक्त
 एवं हाथ में मद्यपात्र धारण किये हैं। पुस्तक से लिया गया चित्र थोडा अस्पष्ट है, इसीलिए इसमें पात्र दिख नही रहा है। इसी प्रतिमा का स्पष्ट चित्र हम Norton Simon संग्रहालय की आधिकारिक साईट से अपलोड कर रहे हैं - 

- https://www.nortonsimon.org/art/detail/F.1975.15.1.S/
(आप लिंक पर क्लिक करके भी देख सकते हैं) 

यह प्रतिमा 6 ठें क्रमांक पर दिखाई गई प्रतिमा जैसी ही है। इस प्रतिमा के आधार पर 6 ठें क्रमांक की प्रतिमा के बलराम होने में कोई संदेह शेष नहीं रहता है। 

(17) मथूरा संग्रहालय में सुरक्षित खंडित बलराम की प्रतिमा - 

- Ancient Scuplture From India (A catalogue of the exhibition), fig. no. 65

इस प्रतिमा का अधिकांश भाग खंडित है, इसमें सप्त नागफण युक्त छ्त्र सहित श्री बलदेव जी है। उनका एक हाथ ऊपर उठा हुआ है, जैसा कि अन्य प्रतिमाओं में भी देखा जा सकता है। यह 300 ईस्वी प्राचीन है। 

(18) Azes 1 के सिक्कों पर बलराम का चित्रांकन - 

- Migration, Trade and Peoples: part 2, Gandharan art, fig. 6, page no. 69

यह सिक्का maues के सिक्के के समान ही है। ऐसा लगता है कि बलराम के अंकन की प्रथा को maues के बाद अन्य भारतीय शक शासक Azes 1 ने भी जारी रखा था। इस सिक्के का स्पष्ट चित्र - 


- http://coinindia.com/galleries-azes1.html

यह सिक्का 45 - 30 ईसापूर्व प्राचीन है। इसमें बलराम की पहचान हल व मूसल से होती है। 

(19) अंधेर (म.प्र.) से प्राप्त बलराम की प्रतिमा - 

- Artibus Asiae, Vol. 64, No. 1 (2004), page no. 35, fig. No. 7

यह प्रतिमा 25 ईस्वी प्राचीन है। इसमें बलराम सर्पछत्र युक्त तथा हाथ में मूसल और हल लिये हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि इस मुर्ति का अब तक पूजन होता है। यह सांचि से कुछ दूरी पर स्थित अंधेर नामक स्थान से प्राप्त हुई थी। 

(20) अंधेर से प्राप्त एक और अन्य बलराम की प्रतिमा - 


- Artibus Asiae, Vol. 64, No. 1 (2004), page no.36, fig. No. 8

यह प्रतिमा भी 25 ईस्वी प्राचीन है। इस प्रतिमा की रुपरेखा उपरोक्त प्रतिमा जैसी ही है किंतु इसमें सर्पछत्र नहीं है। साथ ही यह नीचले भाग से खंडित है। 

(21) मेहगांव से प्राप्त बलराम की प्रतिमा - 

- Artibus Asiae, Vol. 64, No. 1 (2004), page no.38, fig. no. 13

यह प्रतिमा मध्यप्रदेश में मेहगांव से प्राप्त हुई थी। यह 50 ईस्वी प्राचीन है। इसमें बलदेव जी नागछत्र युक्त और हाथ में सिंहमुख हल धारण किये हैं। 

(22) विदिशा से प्राप्त बलराम की प्रतिमा - 

- Artibus Asiae, Vol. 64, No. 1 (2004), page no.38, fig. No. 14

विदिशा का गरुडध्वज स्तम्भ श्रीकृष्ण और भागवत मत की प्राचीनता का एक सर्वमान्य प्रमाण है। विदिशा से प्राप्त बलराम जी की यह मुर्ति 100 ईसापूर्व से 200 ईस्वी तक प्राचीन मानी गयी है। यह मुर्ति वर्तमान में भी पूजी जाती होगी। इसमें बलराम जी नागछत्र युक्त एवं हलायुध धारण किये हुए हैं। 

(23) मथुरा से प्राप्त, राजकीय संग्रहालय कलकत्ता में सुरक्षित बलराम की प्रतिमा - 


- Mathura Sculpture: a catalogue of sculptures of mathura school in the Indian museum, Kolkata, Plate no. VII

यह प्रतिमा मथूरा के गणेसरा, माता मठ से प्राप्त हुई थी। इस समय यह प्रतिमा राष्ट्रीय संग्रहालय कलकत्ता में क्र. N. S. 3761 से सुरक्षित है। इसका समय 300 ईस्वी है। इसमें बलराम जी एक कुंडली, द्विभुज तथा हाथों में सिंहमुख हल एवं मूसल धारण किये हैं।

(24) अमरावती से प्राप्त बलराम प्रतिमा - 


- Indian Sculpture : Masterpieces Of Indian, Khmer And Cham Art, plate no. 46

यह प्रतिमा सर्पछत्र युक्त और चषक पात्र धारण किये हुए है, जो कि बलराम जी की प्रतिमा का एक लक्षण है। यह प्रतिमा अमरावती से प्राप्त हुई थी तथा यह Musee Guimet paris संग्रहालय के MA 119 क्रमांक पर सुरक्षित है। पुस्तक लेखक ने इसे नागराज मात्र बताया है किंतु बलराम जी की अन्य प्रतिमाओं से तुलना करने पर, यह प्रतिमा बलराम की ही सिद्ध होती है। प्रतिमा में नाग और चषक पात्र आदि लक्षण इसे बलराम ही दर्शाते हैं। यह प्रतिमा 200 ईस्वी प्राचीन है। 

(25) करुर (दक्षिण भारत) से प्राप्त संगम काल की एक अंगूठी पर बलराम जी का नाम - 

करुर से एक अंगूठी प्राप्त हुई थी, जिस पर तमिल ब्राह्मी में एक लेख है। इसका विवरण इस प्रकार है - 

- Early Tamil Epigraphy :from the earliest times to the sixth century C. E. (Revised & Enlarged Second Edition Vol. 1 Tamil - Brahmi Inscriptions), page no. 177 (Kindle version) 

इस अंगूठी का तमिल ब्राह्मी सहित चित्र भी देखिये - 

- Early Tamil Epigraphy :from the earliest times to the sixth century C. E. (Revised & Enlarged Second Edition Vol. 1 Tamil - Brahmi Inscriptions), Catalogue B, fig. no. 10, page no. 184 (Kindle version) 

लगभग 1800 वर्ष पुरानी इस अंगूठी पर तमिल में तथा तमिल ब्राह्मी लिपि में - "na lve llai sa" लिखा है, जो कि श्री कृष्ण जी के बड़े भाई बलराम जी का तमिल संगम ग्रंथों में दिया एक तमिल नाम है। 
प्राचीन तमिल संगम ग्रंथों में बलराम जी को यह नाम दिया है, इसकी पुष्टि इस पुस्तक में भी दी है, जो यहां पढ सकते हैं -

- Early Tamil Epigraphy :from the earliest times to the sixth century C. E. (Revised & Enlarged Second Edition Vol. 1 Tamil - Brahmi Inscriptions), page no. 177 (Kindle version) 

इस प्रमाण से स्पष्ट है कि बलराम जी की प्रसिद्धि प्राचीन काल में दक्षिण तक थी। 


(26) राजपुर (हाथरस) से प्राप्त बलराम की प्रतिमा - 


- Mathura: An Art and Archaeological Study, fig. 7.11a & b, Page no. 359

यह प्रतिमा खंडित अवस्था में (दो भागों में) हाथरस से प्राप्त हुई थी। इसके दो भाग हैं जिन्हें मिलाने पर प्रतिमा पूरी होती है। इस प्रतिमा में बलराम नाग छत्र युक्त है तथा एक हाथ ऊपर उठाये और दूसरे हाथ में चषक पात्र पकड़े हैं। यह प्रतिमा कुषाण कालीन है। 

बलराम से सम्बंधित तालध्वज (ताडवृक्ष प्रतीक) का प्रमाण - स्कन्दादि पुराणों में ताडवृक्ष अथवा तालध्वज को बलराम जी का प्रतीक कहा है। प्राचीन भारतीय स्थापत्यकला में अनेकों जगह ताडवृक्ष का अंकन मिलता है। स्कन्द पुराण में ताल (ताड) ध्वज को बलराम जी का प्रतीक बताते हुए लिखा है - 


-The Skanda - Purana, Vaisnavakhanda, Purusottama - ksetra Mahatmya, Ch. 25.14 - 15

यहां ताडवृक्ष को बलराम जी का ध्वज चिह्न बताया है। 

इसी ताडवृक्ष (ध्वज) स्तम्भ की प्राप्ति हमें विदिशा के बेसनगर से भी होती है। बेसनगर से प्राप्त गरूडध्वज स्तम्भ अत्यंत प्रसिद्ध है किंतु इसी जगह से पंचवृष्णि वीरों से सम्बंधित मकरध्वज (प्रद्युम्न) और ताडवृक्ष ध्वज (बलराम) भी प्राप्त हुआ था। सर्वप्रथम कनिंघम ने ताडध्वज स्तम्भ का एक रेखाचित्र दिया था।


- Archaeological Survey Of India Report Of Tours In Bundelkhand And Malwa in 1874 - 75 And 1876 - 77, Volume X, Plate no. XIV

200 ईसापूर्व प्राचीन यह स्तम्भ खंडित अवस्था में प्राप्त हुआ था, जिसका मूल चित्र ऐसा है - 

- Vrsnis in Ancient Art and Literature, fig no. 4.2, page no. 73 

ताडवृक्ष ध्वज (तालवृक्ष) का अंकन भारत के प्राचीन सिक्कों पर भी मिलता है - 
(अ) अयोध्या के शासक आयुमित्र (200 ईस्वी) के सिक्कों पर - 

- Ancient Indian Coins: A Comprehensive Catalogue, Coin no. 1064, Page no. 161

इस सिक्के के पश्च भाग पर आप देख सकते हैं कि मयूर के साथ ताडवृक्ष का अंकन है। यहां मयूर और ताडवृक्ष का अंकन शासक की क्रमशः कार्तिकेय और बलराम पर श्रद्धा दर्शाता है। 

(ब) मालव सिक्के (200 - 100 ईसापूर्व) पर ताडवृक्ष - 


- Ancient Indian Coins: A Comprehensive Catalogue, Coin no. 355, Page no. 60 

यहां भी सिक्के के अग्र - भाग पर प्रमुखता रुप से ताडवृक्ष का अंकन है, जो कि बलराम जी का प्रतीकात्मक अंकन दर्शाता है। 

(स) एरच के सिक्के (मौर्य - पश्च मौर्यकाल) पर ताडवृक्ष - 

- Ancient Indian Coins: A Comprehensive Catalogue, Coin no. 944, Page no. 137

एरच से प्राप्त इस पंचमार्क सिक्के पर विभिन्न प्रतीक हैं। जिनमें से एक ताडवृक्ष भी है। 

इस प्रकार हम देख सकते हैं कि प्राचीन भारतीय स्थापत्य में बलराम जी के प्रतीक ध्वज (ताडवृक्ष) का अंकन होता था। विभिन्न प्राचीन मुद्राओं और स्तम्भों पर ताडवृक्ष का अंकन बलराम जी के चित्रांकन की प्राचीनता दर्शाता है। 



इस लेख की समाप्ति पर हम बलराम जी को कृषि का देवता कहे जाने का एक शास्त्रीय प्रमाण भी देते हैं - 
विष्णुधर्मोत्तर पुराण 118, 12 - 13 में आया है - 

- कला वैभव, संयुक्तांक 25 - 26 (वर्ष 2018 - 19, 2019 - 20) विभागीय शोध - जर्नल (रेफरीड), पृष्ठ क्रमांक 101

इन सब प्रमाणों से निष्कर्ष निकलता है कि कृषि व नाग देवता के रुप में बलराम का पूजन ईसा से काफी पूर्व होता था। जिन स्थानों पर बौद्ध - जैन प्रभाव अत्यधिक था, उन स्थानों पर भी बलराम व कृष्ण का पूजन होता था। बलराम जी के प्राचीन प्रमाणों से उनके भ्राता वासुदेव की भी प्राचीनता सिद्ध होती है। दोनों महाभारत के पात्र थे अत: महाभारत की भी ईसापूर्व प्राचीनता इनसे सिद्ध होती है। 

संदर्भित ग्रंथ एवं पुस्तकें - 
1) The Life Of Krishna In Indian Art - P. Banerjee 

2) प्राचीन भारतीय मुर्ति विज्ञान (प्रारम्भ से गुप्तकाल तक की ब्राह्मण, बौद्ध एवं जैन धर्मों की प्रमुख मुर्तियों का अध्ययन) - डॉ. नीलकण्ठ पुरुषोत्तम जोशी 

3) Many Heads, Arms And Eyes (Origin, Meaning And Form Of Multiplicity In Indian Art) - Doris Meth Srinivasan 

4) Indian Art (a history of indian art from the earliest times up to the third century A.D.) - Vasudeva S. Agrawala 

5) Society, Religion And Art Of The Kushana India, A Historico - Symbiosis - Kanchan Chakraberti 

6) Indian Sculpture Vol 1 - Pratapaditya Pal

7) Indian Journal Of Archaeology Vol 5 No. 1 (Jan 2020 - April 2020)

8) Indian Journal Of Archaeology Vol. 4 No. 4

9) South Asian Studies, 17: 1

10) Emergence of Visnu and siva Images in india: Numismatic and Sculptural Evidence (PPT) - Osmund Bopearachchi

11) South Asian Studies, 19:1

12) Iconography Of The Hindus, Buddhists & Jains (Proceedings of the national conference on January 8 & 9, 2016)

13) कला वैभव, संयुक्तांक 25 - 26 (वर्ष 2018 - 19, 2019 - 20) विभागीय शोध - जर्नल (रेफरीड)

14) Mathura: the cultural heritage -  Ed. Doris Meth Srinivasan

15) Ancient Scuplture From India (A catalogue of the exhibition)

16) Migration, Trade and Peoples: part 2, Gandharan art - Edited by Dr. Christine FRÖHLICH 

17) Artibus Asiae, Vol. 64, No. 1 (2004)

18) श्री हरिवंश पुराण - गीताप्रेस गोरखपुर 

19) The Skanda - Purana Part 5 - Motilal Banarsidass Publishers Delhi

20) Archaeological Survey Of India Report Of Tours In Bundelkhand And Malwa in 1874 - 75 And 1876 - 77 (Volume X) -Alexander Cunningham 

21) Ancient Indian Coins: A Comprehensive Catalogue - Wilfried Pieper

22) Vrsnis in Ancient Art and Literature - Vinay Kumar Gupta

23) Mathura Sculpture: a catalogue of sculptures of mathura school in the Indian museum, Kolkata - Mangala Chakrabarti 

24) The Splendour Of Mathura Art & Museum - R. C. Sharma

25) Indian Sculpture : Masterpieces Of Indian, Khmer And Cham Art - M. M. Deneck 

26) Early Tamil Epigraphy :from the earliest times to the sixth century C. E. (Revised & Enlarged Second Edition Vol. 1 Tamil - Brahmi Inscriptions) - Iravatham Mahadevan 

27) Mathura: An Art and Archaeological Study - Vinay Kumar Gupta


 महत्वपूर्ण लिंक - 

1) http://coinindia.com/galleries-azes1.html

2) https://www.nortonsimon.org/art/detail/F.1975.15.1.S/





Main Post:
https://nastikwadkhandan.blogspot.com/2021/09/blog-post.html?m=1

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