कुछ समय पहले हमने एक पोस्ट के माध्यम से सिद्ध किया था कि मैगस्थनीज ने जिन ब्राचमनों का उल्लेख किया है, वे वैदिक धर्मी ब्राह्मण ही थे। इस पोस्ट पर पुनः नवबौद्धों ने अपनी धूर्त बुद्धि के द्वारा आक्षेप किया। उनके आक्षेप वैसे तो कोई ज्यादा खास नहीं हैं किेतु पाठकगणों को कुछ नई जानकारी मिले और कुछ रोचक तथ्यों से भी वे परिचित होवें, इसीलिए हम ये पोस्ट लिख रहें हैं।
आप लोग नवबौद्धों का दोगलापन इस प्रकार देख सकते हैं कि वे लोग बार - बार अपना मत इस विषय पर बदलते रहते हैं। जैसे कि पहले ये लोग कहते थे कि ब्राचमन लोग असल में बौद्ध थे। किंतु जब हमने इसका खंडन किया तो यह कहने लगे कि ब्राचमन लोग जैन थे किंतु जब हमने इसका भी मुहतोड उत्तर दिया तो यह ब्राचमनों को कुछ और ही बताने लगे हैं। तो आईये इनके दावों का प्रत्युत्तर देते हैं।
ये लोग कहते हैं कि वैदिक धर्म में वर्ण व्यवस्था थी। लेकिन मैगस्थनीज ने भारत में सात वर्ग बताये हैं। अतः ब्राचमन और ब्राह्मण एक नहीं हैं।
उत्तर - इस प्रश्न को पूछने से ही ज्ञात होता है कि इन लोगों का बुद्धि स्तर किस प्रकार का है। ये बात सभी जानते हैं कि प्राचीन यात्रियों और इतिहासकारों द्वारा जब किसी दूसरे देश का वृतांत लिखा जाता है तो वे लोग उस देश की व्यवस्थाओं और परम्पराओं को अपने स्वयं के दृष्टिकोण से देखते हैं। तत्कालीन भारतीयोें को देखकर तथा उनके कार्यों के आधार पर मैगस्थनीज ने उन्हें सात भागों में वर्णित कर दिया था। इससे वर्ण व्यवस्था या वर्ण विधान नहीं था। ऐसा कुछ भी सिद्ध नहीं होता है। यहां तक कि ईसा पूर्व भारतीय अभिलेखों में भी चारों वर्णों के नाम आ जाते हैं जैसे कि वाशिष्ठी पुत्र पुलुमावि के अभिलेख में ब्राह्मण और क्षत्रिय हैं तथा अशोक के मानसेरा के अभिलेख में वैश्य और ब्राह्मण हैं। ऐसा पुराणों में भी देखने को मिलता है, जहां पुराणकारों ने अन्य देशों के लोगों को अपने दृष्टिकोण के अनुसार चार वर्णों में जगह - जगह बताया है। अतः सात वर्गों में दर्शाना मैगस्थनीज का अपना दृष्टिकोण था। आगे हम ये सिद्ध कर देगें कि ब्राचमन और ब्राह्मण एक ही है।
नवबौद्ध का कहना है कि मैगस्थनीज ने बुद्ध का उल्लेख किया है किंतु वैदिक ग्रंथों या ब्राह्मणों का उल्लेख नहीं किया है।
उत्तर - मैगस्थनीज की वास्तविक इंडिका हमारे समक्ष उपलब्ध नहीं है किंतु उसके अनेकों संदर्भ अनेकों पाश्चात्य लेखकों ने अपनी - अपनी यात्रा, इतिहास पुस्तकों में दिये हैं। उन्हीं संदर्भों के आधार पर हम मैगस्थनीज के वचनों का निर्धारण करते हैं। मैगस्थनीज के वास्तविक वचनों को किसने अधिक शुद्धतम रुप में देने का प्रयास किया है? तथा मैगस्थनीज को उद्धृत करने वाले लेखक कितने प्राचीन हैं। इन सब बिंदुओं पर भी विचार करना चाहिए।
मैगस्थनीज की इंडिका का उल्लेख करने वाले निम्न लेखक हैं - (1) Diodorus Siculus - 100 B.C
(2) Arrian - 89 AD
(3) starbo - 64 BC
(4) Pliny the elder - 70 AD
(5) Claudius Aelianus - 170 AD
(6) Plutarch - 119 AD
(7) Dio Chrysostom - 49 AD
(8) clement of alexandria - 150 AD
इन सब लोगों में से मात्र clement of alexandria ने ही वुद्ध का उल्लेख "बौत्त" शब्द से किया है। यहां ये बात अवश्य ध्यान देनी चाहिए कि alexandria से प्राचीन जितने भी ग्रीक लेखक हैं।
उन सबमें से किसी को भी इंडिका में बुद्ध नहीं दिखें हैं जबकि alexandria को बुद्ध नजर आ गये हैें।

- भारतवर्ष के दार्शनिकों के विषय मेंं, खंड 43, पृष्ठ 88, मेगास्थिनीज का भारत वर्णन
इसका अर्थ यह हुआ कि अगर मैगस्थनीज बुद्ध का उल्लेख करता तो, मैगस्थनीज का उद्हरण देने वाले प्राचीन ग्रीक इतिहासकारों के संदर्भों में भी बुद्ध का उल्लेख अवश्य मिलता जबकि सभी इतिहासकारों ने ब्राचमेन, सरमेज का उल्लेख तो किया है, किंतु बुद्ध का नाम तक नहीं लिया है। alexandria का काल लगभग 150 ईसा बाद का है और उसके बाद बुद्ध किसी के लिए भी अज्ञात नहीं थे अतः इंडिका में सरमेज को देखकर alexandria ने बुद्ध को उनके साथ जोड दिया था। यहां एक बात अवश्य गौर करने वाली है, वो यह है कि इसी alexandria ने विभिन्न देशों के प्रमुख दार्शनिकों द्वारा ईसामसीह की भविष्यवाणीं का उल्लेख किया है।
- भारतवर्ष के दार्शनिकों के विषय में, खंड 43, पृष्ठ 87, मेगास्थिनीज का भारत वर्णन
यहां देखकर ही पता लग रहा है कि लेखक ने ईसामसीह की भविष्यवाणी वाली गप्प मारी है। यहां ऐसा भी प्रतीत होता है कि विभिन्न देशों की शास्त्रीय परम्पराओं में अथवा पौराणिक कथाओं में किसी न किसी महापुरुष, देवता के आने की भविष्यवाणी होती है। जैसे पुराणों में कल्कि अवतार की, अतः लेखक ने उन सब भविष्यवाणियों को अपने ईसाई दृष्टिकोण से देखकर , ईसामसीह के आने की भविष्यवाणी होना बतला दिया। अतः यह स्पष्ट है कि मैगस्थनीज के वर्णनों में बहुत कुछ बडा चढाकर लेखक ने प्रस्तुत किया है। मेगस्थनीज ने न तो बुद्ध का उल्लेख किया था और न ही ईसामसीह की कोई भविष्यवाणी की बात।
इसीलिए मिस्टर मैकक्रिन्डल कर्तृक मेगास्थनीज के आंग्ला अनुवाद के भाषानुवादक बाबू अवधविहारी शरण जी ने भी अपने अनुवाद की टिप्पणी में लिखा है -
"आश्चर्य का विषय है कि ग्रीक लेखकों ने बौद्धों के विषय में नहीं लिखा है।...."
- द्विचत्वारिंशत पत्रखंड, मेगास्थनीज का भारतविवरण
आगे नवबौद्ध ने आक्षेप किया है कि अगर मेगास्थनीज ब्राह्मणों का उल्लेख करता तो उनके ग्रंथों जैसे वेद, रामायण और महाभारतादि का भी उल्लेख करता?
उत्तर - ऐसा सवाल करने से पहले नवबौद्ध को स्वयं चार बार मेगास्थनीज का भारत विवरण पढना चाहिए था। क्योंकि इसमें बौद्ध ग्रंथों जैसे - त्रिपिटकों और जातक कथाओं का भी उल्लेख नहीं है। जातक कथाऐं तो छोडिए, भारत की लोक कथाओं जिनका संकलन जातक, महाभारत, पंचतंत्र, हितोपदेश आदि में भी उनका भी कोई उल्लेख नहीं है। जबकि बुजुर्गों द्वारा आज भी भारत को गांव - गांव में लोक कथाऐं सुनाई जाती है। इनमें से एक कथा जिसे हम 'प्यासा कौआ' कहते हैं वो कथा सिंधु सभ्यता के समय भी प्रचलित थी। इसका प्रमाण लोथल से प्राप्त एक मिट्टी के पात्र पर बनी चित्रकारी से मिलता है।

- Painted Decorations on pottery from Chalcolithic Sites of Gujarat : A preliminary study, fig. 87
अतः आवश्यक नहीं है कि मेगास्थनीज में सभी बातों का उल्लेख मिल जाये। हां बुद्ध का उल्लेख करने वाले alexandria से प्राचीन Dio chrysostom (49 AD) ने अपने लेखों में महाभारत और रामायण और महाभारत का संकेत अवश्य कर दिया है। अपने वर्णनों में Dio chrysostom लिखते हैं -
- The fifty third discourse : on Homer, Dio Chrysostom vol. 4
अर्थात् भारत में होमर के काव्यों को गाया जाता है। भारतीय इन काव्यों को अपनी भाषा और लय में गाते हैं।
यहां dio chrysostom ने महाभारत और रामायण की होमर के इलियाड और ओडेसिय साम्यता देखकर उन्हें होमर का भारतीय भाषाओं में गाये जाने वाले काव्यों के रुप में कर दिया है। यह बात हम पहले बता चुके हैं कि अधिकतर बाहरी यात्री जब दूसरे देश के बारे में लिखते हैं तो वहां कि परम्पराओं या मान्यताओं का वर्णन अपने स्वयं की मान्यताओं व परम्पराओं के दृष्टिकोण से करते हैं। इसका एक उदाहरण यह है कि अधिकतर भारतीय काबा के अल असवाद नामक काले पत्थर को शिवलिंग और मक्का को शिव मंदिर के रुप में अनेकों कहानियों के साथ बतलाते हैं। क्योंकि यहां वे उस चीज को अपने हिंदु या भारतीय दृष्टिकोण से देखते हैं जबकि वास्तविकता थोडी अलग होती है। ऐसे ही ग्रीक इतिहासकार हेरोडोटस ने मिस्र के प्रमुख देवों में हेराक्लीज का नाम लिखा है जबकि मिस्र में हेराक्लीज नामक कोई भी देवता नहीं था। अतः सम्भवतः उसने मिस्र के अमन राँ की हेराक्लीज से साम्यता देखकर उन्हें हेराक्लीज लिख दिया होगा। इसी तरह Dio chrysostom ने महाभारत और रामायण का उल्लेख होमर के काव्य के रूप में किया है।
अब हम ब्राचमन ही ब्राह्मण हैं। इस प्रकरण में कुछ और पुष्ट प्रमाण देते हैं, जिससे मैगस्थनीज के समय हिंदु धर्म और मान्यताओं की उपस्थिति ज्ञात होगी।
हिंदुओं में सबसे प्रमुख सूर्य देव की पूजा है। आज भी अनेकों हिंदू प्रातःकाल सूर्य को जल चढाता है। वेदों व उपनिषदों में अनेकों जगह सूर्य की स्तुतियां हैं। सूर्य की पूजा भारत में हिंदुओं के अलावा जैनों और बौद्धों में अप्राप्त है।
बौद्ध का उल्लेख करने वाले alexandria भारत में सूर्य पूजा का उल्लेख करते हैं -
- Exhortation to the greeks, chep. 2 Causes of idolatry deitication of heavenly bodies, page 53
प्रसिद्ध पाश्चात्य दार्शनिक H.T. Colebrooke अपनी प्रसिद्ध पुस्तक Essays on the Religion and philosophy of the hindus में अनेकों प्राचीन ग्रीक दार्शनिकों के वृतांतों से भारत में ब्राचमनों द्वारा सूर्य पूजा को दर्शाते हैं।
- Ch. XII observations on the sect jains, page no. 287
अर्थात् philostratus अपनी पुस्तक life of apollonius में ब्राचमनस् द्वारा सूर्य पूजा का उल्लेख करता है। इसी तरह pliny, solinus, stephanus भी ब्राचमनों द्वारा सूर्य पूजा किये जाने का उल्लेख करते हैं।
आगे colebrooke ने लिखा है कि यह सूर्य पूजा हिंदुओं के अलावा जैनों और बौद्धों में प्राप्त नहीं होती है। अतः ब्राचमन हिंदु ब्राह्मण ही थे।
ब्राचमनों की हिन्दुओं से साम्यता के कुछ अन्य तथ्य भी हम आप सबके सामने प्रस्तुत करते हैं -
श्री colebrooke ने अपनी पुस्तक में ग्रीक दार्शनिक पाइथागोरस और वैदिक (हिंदु) दर्शनों के मध्य अनेकों समानताओं को सप्रमाण उजागर किया है। जैसे -
- X on the philosophy of the hindus. Part V, on indian sectaries, page no. 268 - 269
यहां सारांश यह है कि ग्रीक दर्शन और भारतीय दर्शन में बहुत सी समानतायें हैं। जैसे पाईथागोरस ने तीन लोक - स्वर्ग, पृथ्वी और आकाश माने हैं। उसी प्रकार हिंदुओं में भी तीन लोकों - भू, स्वर्ग, अंतरिक्ष लोक की मान्यतायें हैं। जैसे पाईथागोरस ने भू लोक में मनुष्यों, नरकलोक (पाताल) में दैत्यों और स्वर्ग में देवों का वास माना है, उसी प्रकार से हिंदुओं में भी मनुष्य,देव, असुर के लोकों का उल्लेख है। जिस तरह पाईथागोरस पुनर्जन्म को मानता है, उसी प्रकार से हिंदु में भी पुनर्जन्म की मान्यता है। हिंदुओं के मन, आत्मा, सुक्ष्म शरीर की तरह पाईथागोरस ने भी आत्मा, मन, शरीर का अस्तित्व माना है।
इन सबका निष्कर्ष यह निकलता है कि इस प्रकरण में भारतीय (हिंदू) युनानियों के गुरु रहे होगें।
यहां हमने देखा कि पाइथागोरस और हिंदुओं के दर्शन में अत्यन्त समानतायें हैं। पाईथागोरस ने अपने दर्शन का बहुत सा भाग भारत के इन्हीं ब्राचमेनों से सीखा था। यह बात स्वयं alexandria भी कहता है -
- XV The Greek philosophy in great part derived from the Barbarians, page 398, the miscellanies, The writings of Clement of alexandria
अर्थात् पाईथागोरस ब्राचमनों और गलातियों का श्रौता था।
Apuleius ने तो इतना तक कहा है कि पाईथागोरस ने दर्शन का महत्वपूर्ण भाग ब्राह्मणों से सीखा था।
- The florida of Apuleius, page no. 388 - 389, The Work of APULEIUS
अर्थात् पाईथागोरस ने ब्राह्मणों से अपने दर्शन का महत्वपूर्ण भाग सीखा था। उसने उनसे शरीर विज्ञान, आत्मा की कार्यप्रणाली एवं कर्मफल के बारे में सीखा।
इन प्रमाणों से सिद्ध है कि पाईथागोरस के दर्शन पर ब्राचमनों की छाप थी अर्थात् उसने ब्राचमनों से सीखा था। हम पूर्व में तुलना द्वारा देख चुके हैं कि हिंदुओं और पाईथागोरस के दर्शन में बहुत अधिक समानताऐं हैं और अब हमने देखा है कि पाईथागोरस ने अपने दर्शन का महत्वपूर्ण भाग ब्राचमनों से सीखा था। अतः इस प्रकार की तुलना से ब्राचमन कोई और नहीं अपितु हिंदु ब्राह्मण अथवा वैदिक दर्शन के अनुयायी ही सिद्ध होते हैं।
ग्रीक एवं वैदिक दर्शन के अध्ययन द्वारा कोलब्रूक भी इसी निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि ब्राचमन वास्तव में वैदिक दर्शन को मानने वाले ब्राह्मण ही थे। जो कि सूर्य पूजा, यज्ञ करने वाले थे। उनके सिद्धान्तों को आज के हिंदुओं से तुलना करने पर वे हिंदु ही सिद्ध होते हैं। अतः वेदों के अनुगामी लोग सिकन्दर के समय भी भारत में थे। कोलब्रुक के कथन को भाषानुवाद करके रामचंद्र शुक्ल जी ने अपनी "मेगास्थिनीज का भारत वर्णन" पुस्तक की टिप्पणी में दिया है।
- खंड 43, भारतवर्ष के दार्शनिकों के विषय में, पेज नं. 88, मेगास्थिनीज का भारत वर्णन
अतः वैदिक धर्म सिकन्दर के समय भी था। सिकन्दर ही नहीं अपितु पाईथागोरस (500 B.C.) के समय भी वैदिक धर्म था। इसलिए ब्राचमन कोई और नहीं बल्कि ब्राह्मण ही थे।
संदर्भित ग्रंथ एवं पुस्तकें -
1) मेगास्थिनीज का भारत वर्णन - अनु. रामचंद्र शुक्ल
2) मेगास्थनीज का भारतविवरण - अनु. बाबू अवधविहारी शरण
3) Painted Decorations on Pottery from Chalcolithic Sites of Gujarat: A Preliminary Study - Preeti A. Panjwani and Bratati Sen
4) Dio Chrysostom IV - T. E. Page
5) Clement of Alexandria - G.W. Butterworth
6) Essays on the religion and philosophy of the hindus - H.T. colebrooke
7) The writing of clement of alexandria - The Rev. William wilson
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