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Showing posts from August, 2021

कुरान मे अन्तर्विरोध

इस्लाम मे कुरान को अल्लाह की किताब माना जाता है, और ऐसा समझा जाता है कि कुरान मे ना तो कोई कमी है और ना ही कोई अन्तर्विरोध। दूसरे शब्दो मे कुरान की बाते अटल और अकाट्य है लेकिन अगर आप ध्यान से कुरान को पढ़े तो पायेँगे कि कुरान मे बहुत सी कमियाँ है यहाँ तक कि बहुत सी आयतेँ तो ऐसी है जो परस्पर विरोधी है। प्रस्तुत लेख “कुरान मे अन्तर्विरोध- मे ऐसे ही कुछ आयतो का उदाहरण आपके समक्ष प्रस्तुत है। 1- पहला मुसलमान कौन?? :- क) “मुहम्मद” (सूरा अल-अनआम 6- आयत 163) (हे मुहम्मद, लोगो से कहो) अल्लाह का कोई साझी नही है, मुझे तो इसी बात की आज्ञा मिली है, और सबसे पहला मुस्लिम (आज्ञाकारी) मै हूँ। ख) “मूसा” (सूरा अल आराफ 7: आयत 143) मूसा मूर्छित होकर गिर पड़ा और जब होश मे आया तो कहा महिमा है तेरी! मै तेरे समक्ष तौबा करता हूँ, और सबसे पहला ईमान लाने वाला मै हूँ। ग) “कुछ जादूगर” (सूरा अस शूअरा 26: आयत 51 घ) “इब्रराहिम” (सूरा बकरा 2: आयत 127 से 133, सूरा आले इमरान 3: आयत 67) ङ) “आदम” (सूरा बकरा 2: आयत 37) अब सवाल उठता है कि अल्लाह क्या खुद नही जानता कि पहला मुसलमान कौन था?? अगर जानता है तो लोगो को उलझाकर गलत मत

क्या सभी मुसलमान समान हैं ?

इस्लाम की नजर में सभी मुसलमान समान और बराबर हैं ,चाहे वह इस्लाम के किसी भी फिरके के मानने वाले हों .यह बयान जकारिया नायक ने एक सभा में उस समय कहा था ,जब किसी ने उस से शिया सुन्नी विवाद के बारे में सवाल किया था .जकारिया ने यह भी दावा किया था कि इस्लाम की जो बुनियादी मान्यताएं है ,उनमे सुन्नी और शिया दौनों ही एकमत हैं .जैसे अल्लाह ,कुरान ,नबूवत ,सहाबी ,आदि विषयों पर सुन्नी और शिया में कोई विभेद नहीं है .यही इस्लाम की महानता है ,जो इस्लाम के दूसरे धर्मों से श्रेष्ठ साबित करती है . इस लेख से पता चल जायेगा कि जकारिया के दावों में कितनी सत्यता है .वैसे सब जानते है कि शिया सुन्नी हमेशा लड़ते रहते है .और एकदूसरे को काफ़िर बता कर क़त्ल भी कर देते हैं इनका यह विवाद मुहमद की मौत से बाद सन 632 से ही शुरू हो गया था .शिया फिरका मुसलमानों का दूसरा बड़ा समुदाय है .जादातर शिया ईरान ,दक्षिण इराक ,लेबनान ,सीरिया ,अफगानिस्तान ,पाकिस्तान ,और भारत में पाए जाते हैं .शियाओं में भी अधिकांश “इसना अशरीاثنا عشريه Twelver हैं .जो अपने बारह इमामों को मानते है .इनका पहला इमाम अली बिन अबुतालिब है .अबतक ग्यारह इमाम ग

इस्लामी चकलाघर !

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सब जानते हैं कि चकला -कोठा ,मुजरा -महफ़िल ,तवायफ -तबला ,शराब -शायरी ,यह सारी गन्दगी इस्लाम और मुसलमानों की देन हैं .जो भारतीय संस्कृति को प्रदूषित कर रही है . चकलों में लोग शराब पीकर बाहरी औरतों से कुछ समय के लिए शारीरिक सुख प्राप्त करते हैं .और एक तरह से वह वेश्या कुछ समय के लिए ग्राहक की पत्नी बन जाती है .यह एक अस्थायी शादी (Temporary Marriage ) होती है . इस परिभाषा के अनुसार मुहम्मद दुनिया का सबसे बड़ा चकला चलाने वाला व्यक्ति था .उसने वेश्यावृति को “मुतआ مُتعه “का नाम देकर उसे जायज बना दिया था .इसमे आपसी मर्जी से पुरुष और स्त्री एक निर्धारित अवधि के लिए शारीरिक सम्बन्ध (sexual Relation )रख सकते हैं .यह अवधि एक दिन ,एक महिना या एक साल तक की हो सकती है .मुतआ में चारसे अधिक की संख्या की पाबन्दी नहीं है . 1 -मुतआ क्या होता है सही मुस्लिम और इब्ने माजा के मुताबिक मुतआ एक प्रकार का अनुबंध है ,जो एक दिन ,दो दिन ,एक माह ,एक साल या तीन सालों के लिए किया जाता है .और अवधि पूर्व भी बिना तलाक दिए ही इसे ख़त्म किया जा सकता है .. Mut’ah is a type of Nikah until an agreed time. It can be for a

कुरान और गैर मुस्लमान

 इस लेख को लिखने से मेरा किसी भी धर्म का विरोध करने का कोई उद्देश्य नही है। अपितु यह लेख इस्लाम के प्रचार के लिए है । कुरान मुसलमानों का मजहबी ग्रन्थ है.मुसलमानों के आलावा इसका ज्ञान गैर मुस्लिमों को भी होना आवश्यक है। ……………………………………………………. मानव एकता और भाईचारे के विपरीत कुरान का मूल तत्व और लक्ष्य इस्लामी एकता व इस्लामी भाईचारा है. गैर मुसलमानों के साथ मित्रता रखना कुरान में मना है. कुरान मुसलमानों को दूसरे धर्मो के विरूद्ध शत्रुता रखने का निर्देश देती है । कुरान के अनुसार जब कभी जिहाद हो ,तब गैर मुस्लिमों को देखते ही मार डालना चाहिए। कुरान में मुसलमानों को केवल मुसलमानों से मित्रता करने का आदेश है। सुरा ३ की आयत ११८ में लिखा है कि, “अपने (मजहब) के लोगो के अतिरिक्त किन्ही भी लोगो से मित्रता मत करो। ” लगभग यही बात सुरा ३ कि आयत २७ में भी कही गई है, “इमां वाले मुसलमानों को छोड़कर किसी भी काफिर से मित्रता न करे। ” कुरान की लगभग १५० से भी अधिक आयतें मुसलमानों को गैर मुसलमानों के प्रति भड़काती है। सन १९८४ में हिंदू महासभा के दो कार्यकर्ताओं ने कुरान की २४ आयातों का एक पत्रक छपवाया । उस पत्

बेशर्म औरत की नंगी हदीस !

इस्लामी धर्म ग्रंथों में कुरान के बाद हदीसों को ही प्रमाण माना जाता है . और इन्हीं के आधार पर ही इस्लामी कानून ” शरियत ” के नियम भी बनाए गए हैं . यहाँ तक मुसलमानों के रीति रिवाज , आचार विचार , खान पान के नियम भी अधिकाँश हदीसों के आधार पर ही होते हैं .क्योंकि मुसलमानों का दावा है कि जिस तरह कुरान में अल्लाह के वचन हैं , उसी तरह अल्लाह कि प्रेरणा से रसूल ने हदीसें भी बयान की थीं .बस अंतर इतना है कि कुरान का संकलन रसूल जीवन काल में ही हो गया था , और हदीसों का संकलन रसूल के इंतकाल के बाद हुआ था .इस से जो लोग इस्लाम के बारे में ठीक से नहीं जानते , उनको ऐसा भ्रम हो जाता है . कि शायद हदीसों में सदाचार , नैतिकता , या समाज को सुधारने के लिए निर्देश दिए गए होंगे .जिसकी प्रेरणा अल्लाह ने रसूल को दी होगी .परन्तु ऐसा नहीं है .मुहम्मद साहब को हदीसें कहाँ से सूझती थी ,और उनका क्या विषय था . यही इस लेख में दिया गया है , 1-हदीस की प्रेरणा औरतों की फूहड़ बातें चूँकि इस्लाम में औरतों के लिए पढ़ना , गाना बजाना , बाहर जाना , और किसी प्रकार के मनोरंजन पर पाबन्दी है . इसलिए वह अपना दिल बहलाने के लिए घर में ह

कुरान के राक्षसी रिवाज :शैतानी शरीयत !!

 मुसलमान भारत को दारुल हरब यानी काफिरों का देश कहते हैं .इसीलिए उन्होंने देश का विभाजन करवा कर पाकिस्तान बनवा लिया था .आज पकिस्तान उनके लिए आदर्श इस्लामी देश है .क्योंकि वहां पर शरीयत का कानून चलता है ,जो कुरआन और हदीसों के अनुसार बताया जाता है . लेकिन कुरआन और हदीसों में परस्पर विरोधी ,तर्कहीन ,और महिला विरोधी आदेशों की भरमार है .मुसलमान इतने मक्कार हैं की उन आदेशों में जो उनके लिए लाभकारी होता है ,उसे स्वीकार कर लेते हैं .और जो महिलाओं के पक्ष में होता है उसे गलत कहते हैं .पकिस्तान में सन 1979 में शरीयत का कानून लागू कर दिया गया था जिसे हुदूद मसौदा “Hudud Ordinence “कहा जाता है . लेकिन पाकिस्तान के कई प्रान्तों जैसे सिंध ,बलूचिस्तान ,पजाब के कुछ भागों और सूबाए सरहद के आलावा अन्य क्षेत्रों में कबाइली कानून और रिवाज चलते हैं .इनमे सारे फैसले वहां की “जिरगा “या पंचायत ही कराती है .यह जिरगा मौत की सजा भी दे सकती है .और अक्सर जिरगा के फैसले बेतुके ,अमानवीय और महिला विरोधी होते हैं .लेकिन हदीसों के हवाले देकर इन फैसलों का कोई विरोध नहीं होता .इसके इन्हीं जंगली हदीसों के कारण वहां पर कई राक

क्या यीशु मसीह एक हिन्दू संत थे? Was Jesus a Hindu Saint?

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 इस्लामी मान्यता के अनुसार् अल्लाह लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए समय समय पर अपने नबी ( Prophets ) या रसूल भेजता रहता है ,और अल्लाह ने फरिश्तों के द्वारा द्वारा कुछ रसूलों को किताब भी दी है , इसी तरह् से इस्लाम में मुहम्मद को भी ईसा मसीह की तरह एक रसूल माना गया है . और अल्लाह ने ईसा मसीह को जो किताब दी थी , मुसलमान उसे इंजील और ईसाई उसे नया नियम (New Testament ) कहते हैं , चूँकि मुसलमान मुहम्मद को भी अल्लाह का रसूल मानते हैं , लेकिन मुहम्मद और ईसामसीह की शिक्षा में जमीन आसमान का अंतर है , जबकि इन दौनों को एक ही अल्लाह ने अपना रसूल बना कर भेजा था, इसका असली कारण हमें बाइबिल के के नए नियम से और ईसा मसीह की जीवनी से नहीं बल्कि कुछ ऎसी किताबों से मिलता है , जिनकी खोज सन 1857 ईस्वी में हुई थी। 1-ईसा के जीवन के अज्ञात वर्ष  ईसा मसीह के अज्ञात वर्षों को दो भागों में बांटा जा सकता है ,जिनके बारे

बौद्ध मत में स्त्री - पुरुष भेदभाव (स्त्री महाब्रह्मा नहीं हो सकती)

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 बौद्धमत में जितने भी बुद्ध शाक्य गौत्तम पर्यन्त हुए हैं, उनमें से एक भी बुद्ध स्त्री नहीं है। न ही आगे कोई स्त्री बुद्ध होगी। क्योंकि प्रत्येक बुद्ध अपने जीवनकाल में आने वाले बुद्ध की भविष्यवाणी अवश्य करते हैं और आगे मैत्रेय नामक बुद्ध होंगे, जो कि स्त्री नहीं है। इसी प्रकार एक और भेदभाव बौद्ध मत में है, जिसमें स्त्री पुरुषों की तुलना में हेय है। वो है कि स्त्री कभी भी महाब्रह्मा नहीं बन सकती है जबकि पुरुष बन सकता है। "अट्ठकथाकार के अनुसार स्त्रियाँ आठ समापत्तियों का लाभ प्राप्त करके ब्रह्मभूमि में उत्पन्न हो सकती है। इस ब्रह्मभूमि के विभावनीकार ने 4 भेद बताये हैं - 1) ब्रह्मा 2) ब्रह्मपरिषद ब्रह्मा 3) ब्रह्मपुरोहित ब्रह्मा 4) महाब्रह्मा। साथ ही विभावनीकार लिखते हैं कि "स्त्री के छन्द, वीर्य, चित्त तथा मीमांसा स्वभाव से ही पुरुषों की तरह तीक्ष्ण न होने से स्त्रीभव से च्युत होकर ब्रह्मभूमि में उत्पन्न होने पर भी वे महाब्रह्मा नहीं हो सकती है।" - विभावनी, पृष्ठ 140 विभावनी पृ. 141 में अट्ठकथा "ब्रह्मतं ति महब्रह्मतं अधिप्पेतं" के प्रमाण से दर्शाया गया है कि स्त्

सम्भोग जिहाद !

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 जीहाद, जिहाद अल निकाह, जिहाद्के लिए औरतों का समर्पण, निकाह, सम्भोग, jihad, Sex in jihad, sex jihad, Sex jihad in syria, sex jihad in tunisia, sex stories of muslim world, Syria, Tunisia       इस्लाम और जिहाद एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते . यदि इस्लाम शरीर है ,तो जिहाद इसकी आत्मा है . और जिस दिन इस्लाम से जिहाद निकल जायेगा उसी दिन इस्लाम मर जायेगा . इसीलिए इस्लाम को जीवित रखने के लिए मुसलमान किसी न किसी बहाने और किसी न किसी देश में जिहाद करते रहते हैं . इमका एकमात्र उद्देश्य विश्व के सभी धर्मों , संसकृतियों को नष्ट करके इस्लामी हुकूमत कायम करना है . अभी तक तो मुसलमान आतंकवाद का सहरा लेकर जिहाद करते आये थे ,लेकिन साल 2013 के अगस्त महीने में जिहाद का एक नया और अविश्वसनीय स्वरूप प्रकट हुआ है ,जो कुरान से प्रेरित होकर बनाया गया है . लोगों ने इसे “सेक्स जिहाद ( Sex Jihad ) का नाम दिया है .चूंकि जिहादियों की मदद करना भी जिहाद माना जाता है ,इसलिए सीरिया में चल रहे युद्ध ( जिहाद ) में जिहादियों की वासना शांत करने के लिए औरतों

मुहम्मद की सेक्स लीला

 मुसलमानो ने एक बात मुह्हमद के बारे में सबसे झूठी ये फैला रखी है की रसूल अल्लाह का बंद बहुत ही नेक और पाक-साफ़ था जो की सरासर झूठ है.. मुहम्मद एक बलात्कारी कामुक और सेक्स क आदि था.. कुरान में भी इसका जिक्र है कुरान की कुछ आयते इस बात को साबित भी करती है जैसे की मुहम्मद ने आयेशा नाम की एक ९ साल की लड़की क पहले अपहरण किया और फिर उसका बलात्कार किया.. उससे आयेशा इतनी पसंद थी की जब भी खली वक्त मिलता था वह उसका बलात्कार करता था.. कुरान की जो आयते इसकी पुष्टि करती है वो इस प्रकार है: Qur’an (33:37) – “But when Zaid had accomplished his want of her, We gave her to you as a wife, so that there should be no difficulty for the believers in respect of the wives of their adopted sons, when they have accomplished their want of them; and Allah’s command shall be performed.” No doubt millions of young Muslims, trying to outdo one another at memorizing the Qur’an, have wondered about what this verse means and why it is there. In fact, this is a “revelation” of convenience that Allah just happened to h

Wife Beating In Islam

 One of the more controversial issues in Islam is the Quran’s authorization for husbands to beat disobedient wives. This is found in chapter 4, verse 34. Additional references on wife beating are found in Muhammad’s traditions (hadith), and biographical material (sira). Many people have criticized Islam because of this harsh sanction and many Muslims have written articles seeking to mollify or defend it. In review of the actual teachings of the Quran, hadith, and sira, Islam is rightly criticized. This command is not only a harsh way to treat one’s wife, it portrays the degraded position of married women in Islam. It will be shown from the Quran, Hadith, Sira, and other Islamic writings that this “Islamic” wife beating is physical and painful. Before we discuss wife beating, we must review Islam’s viewpoint of women and comprehend the position, or standing, it places her in with respect to her husband. This is fundamental in understanding the command to beat the disobedient wife. Islam