देश का सिपाही नर्क में उत्पन्न होगा या पशु योनि प्राप्त करेगा - गौत्तम बुद्ध

आज इस प्रमाण से स्पष्ट हो जायेगा कि बुद्ध की शिक्षा ऐसी थी कि उनसे क्षात्रबल का ह्वास होने लगा था। बुद्ध की शिक्षा क्षत्रिय को अस्त्र शस्त्र त्यागकर भिखारी बनाने वाली थी। बुद्ध में न तो संवेदना थी और न ही कोई सामाजिक व्यवहारिकता, उन्हें बस लोगों को भिक्षुक या कहें भिखारी बनाने की सनक थी। जहां यौद्धा युद्ध में देश, समाज, धर्म की रक्षा करते हुए वीरता दिखलाता है और वीर गति को प्राप्त होता है। वीर गति को प्राप्त हुए यौद्धा को हिंदू धर्म ग्रंथ स्वर्ग का अधिकारी मानते हैं तथा आज भी सभी देशों में यौद्धा को सम्मानित किया जाता है, उनकें स्मृति स्थल बनाये जाते हैं किंतु बुद्ध ने सुत्त पिटक के संयुक्त निकाय के सढायतनवग्ग पालि के 8 वें गामणि संयुत्त में 3 यौधाजीव सुत्त में यौद्धा के बारे में कहते हैं - मूल पालि - ३. योधाजीवसुत्तं ३५५. अथ खो योधाजीवो गामणि येन भगवा तेनुपसङ्कमि; उपसङ्कमित्वा…पे॰… एकमन्तं निसिन्नो खो योधाजीवो गामणि भगवन्तं एतदवोच – ‘‘सुतं मेतं, भन्ते, पुब्बकानं आचरियपाचरियानं योधाजीवानं भासमानानं – ‘यो सो योधाजीवो सङ्गामे उस्सहति वायमति, तमेनं उस्सहन्तं वायमन्...