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Showing posts from June, 2021

देश का सिपाही नर्क में उत्पन्न होगा या पशु योनि प्राप्त करेगा - गौत्तम बुद्ध

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 आज इस प्रमाण से स्पष्ट हो जायेगा कि बुद्ध की शिक्षा ऐसी थी कि उनसे क्षात्रबल का ह्वास होने लगा था। बुद्ध की शिक्षा क्षत्रिय को अस्त्र शस्त्र त्यागकर भिखारी बनाने वाली थी।  बुद्ध में न तो संवेदना थी और न ही कोई सामाजिक व्यवहारिकता, उन्हें बस लोगों को भिक्षुक या कहें भिखारी बनाने की सनक थी। जहां यौद्धा युद्ध में देश, समाज, धर्म की रक्षा करते हुए वीरता दिखलाता है और वीर गति को प्राप्त होता है। वीर गति को प्राप्त हुए यौद्धा को हिंदू धर्म ग्रंथ स्वर्ग का अधिकारी मानते हैं तथा आज भी सभी देशों में यौद्धा को सम्मानित किया जाता है, उनकें स्मृति स्थल बनाये जाते हैं किंतु बुद्ध ने सुत्त पिटक के संयुक्त निकाय के सढायतनवग्ग पालि के 8 वें गामणि संयुत्त में 3 यौधाजीव सुत्त में यौद्धा के बारे में कहते हैं -  मूल पालि -  ३. योधाजीवसुत्तं ३५५. अथ खो योधाजीवो गामणि येन भगवा तेनुपसङ्कमि; उपसङ्कमित्वा…पे॰… एकमन्तं निसिन्‍नो खो योधाजीवो गामणि भगवन्तं एतदवोच – ‘‘सुतं मेतं, भन्ते, पुब्बकानं आचरियपाचरियानं योधाजीवानं भासमानानं – ‘यो सो योधाजीवो सङ्गामे उस्सहति वायमति, तमेनं उस्सहन्तं वायमन्तं परे हनन्ति परिया

संस्कृत के ईसापूर्व अभिलेख भाग - 2

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पिछली पोस्ट में हमने संस्कृत के ईसापूर्व 3 अभिलेख सपाठ ब्लाग पर पोस्ट किये थे। जिसे निम्न लिंक पर जा कर पढा जा सकता है - https://aproudhindubloging.blogspot.com/2021/06/blog-post_74.html?m=1 उसी कडी में अब कुछ और अभिलेख प्रस्तुत किये जा रहे हैं जो कि नवभौंदूओं के ईसापूर्व संस्कृत का कोई अभिलेख नहीं मिलता है, दावें को मिथ्या साबित करता है। ये अभिलेख विदिशा के बेसनगर में मिले थे। जो कि विशाल यज्ञ के संदर्भ में मूद्रित किये गये थे। इनका प्रकाशन आर्केलोजिक सर्वे ओफ इंडिया 1914 - 15 में किया गया था। इसी विदिशा में ईसापूर्व 150 लगभग का वासुदेव का गरुडध्वज स्तम्भ तथा लेख भी मिला है। इसी बेसनगर नामक स्थान पर यज्ञ वेदियां और यूप तथा लेख भी मिले हैं जिन्हें चार भागों में बाटा गया है - 1) शासक का मूद्रण लेख 2) अधिकारी का मूद्रण लेख 3) अभयपात्र का मूद्रण लेख 4) विशिष्ट व्यक्तियों के नामों का मूद्रण लेख ये सभी अभिलेख आर्केलोजी सर्वे की रिपोर्ट के अलावा 'मध्य प्रदेश ग्रंथ अकादमी से प्रकाशित, नि. भा. पू. सर्वे. नई दिल्ली के महेश्वर दयाल खरे की लिखित पुस्तक विदिशा तथा मध्य प्रदेश पूरातत्व विभाग स

संस्कृत के ईसा से पूर्व के अभिलेख

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भीमटे और ईसाई ये दुष्प्रचार करते हैं कि संस्कृत के ईसा से पूर्व कोई शिलालेख अभिलेख प्राप्त नहीं होते है। जबकि भीमटों और ईसाईयों की ये बात बिल्कुल गलत है। ईसा पूर्व के लगभग 4 शिलालेख अभी तक प्राप्त हो गये हैॆ। यदि आगे और खोज और खुदाई कार्य चलेगा तो अन्य भी शिलालेख प्राप्त हो सकते हैं। यहां हम ईसा पूर्व के 3 शिलालेखों का उल्लेख करते हैं - (1) हाथीबाडा का अभिलेख - चित्तौड़ के निकट नागरी नामक ग्राम से डेढ़ किलोमीटर पूर्व हट कर एक हाथीबाड़ा स्थान है वहा 1926 को एक शिलालेख मिला जिसकी लिपि ब्राह्मी और भाषा संस्कृत है। यह अभिलेख ईसा पूर्व दूसरी सदी का है अर्थात् 200 ईसा पूर्व का है। "कारितों अयं राज्ञा भाग वतेन राजायनेन पराशरीपुत्रेण स र्वतातेन अश्वमेध या जिना भागवदभ्यां संकर्षण वासुदेवाभ्याँ अनिहताभ्याँ सर्वेश्वराभ्यां पूजा - शिला प्रकारो नारायण वाटिका। अर्थात् अश्वमेध याजिन राजा भागवत गाजायन पाराशरीपुत्र सर्वतात ने इस पूजाशिला प्राकार को भगवान संकर्षण वासुदेव के लिए, जो अनिहत और सर्वेश्वर हैं, बनवाया। दूसरा अभिलेख इलाहाबाद जिले में कौशाम्बी के निकट पभोसा नामक स्थान पर स्थित एक गुहा की द

क्या मौर्य वंश के समय संस्कृत भाषा नही थी ?

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 अम्बेडकर वादी लोग संस्कृत और वैदिक धर्म से द्वेष के चलते ये कहते है कि मौर्य काल में संस्कृत का कोई शिलालेख या लिखित प्रमाण नही मिलता है इसलिए संस्कृत मौर्य काल के बाद की है कुछ तो ये भी कहते है कि संस्कृत ईसा के बाद की है | लेकिन इन लोगो को सोचना चाहिए कि प्राकृत के शिलालेख अशोक के समय बहुआयत में मिलते है अशोक से लगभग २०० वर्ष पूर्व तक ही प्राकृत पालि के शिलालेख मिलते है तो क्या इस आधार पर ये कहा जा सकता है कि प्राकृत भाषा भी अशोक के समय बनी थी उससे पूर्व नही थी ?  मौर्य काल में प्राकृत के शिलालेख मिलने का कारण ये है कि मौर्य काल में प्राकृत को बौद्ध धम्म प्रभाव के कारण राजाओं ने राष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रयोग किया था जिसमे राजा के संदेश ,राजा के किये कार्य और आदेशो को खुदवाया गया लेकिन जैसे ही वैदिक धर्म पुन भारत में स्थापित हुआ तो राजाओं ने संस्कृत को महत्व दिया और संस्कृत के शिलालेखो में अधिकता आई ,यही कारण है कि प्राकृत की अपेक्षा संस्कृत के शिलालेख ,ताम्रपत्र अधिक है | प्राचीन ग्रंथो का शिलालेख रूप में उल्लेख न मिलने का कारण यह है कि शिलालेख राज्य व्यवस्था और राजा के कार्यो ,स

मित्तानी, पारसी और वैदिक सभ्यता!

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 हमारे कई फर्जी नवभौंदू इतिहासकार वैदिक सभ्यता को बुद्ध धम्म की नकल और बुद्ध के बाद का बताते हैं किंतु जब कुछ वैदिक मतानुयायी वैदिक सभ्यता की प्राचीनता के लिए मित्तानी साम्राज्य के Tušratta (- दशरथ) के संधि पत्र का प्रमाण देते हैं जो कि मृण पट्टिका पर लिखा हुआ है। इस समय यह मृण पट्टिका ब्रिटिश म्यूजियम में E29791 के नाम से सुरक्षित है।  इसे आप ब्रिटिश म्यूजियम की ओनलाईन साईट पर भी देख सकते हैं - https://research.britishmuseum.org/research/collection_online/collection_object_details/collection_image_gallery.aspx?partid=1&assetid=328224001&objectid=327168 इस पट्टिका पर वैदिक देव मित्र, अरुण, इंद्र, नास्त्यों के नाम प्राप्त हुए हैं जो कि वैदिक सभ्यता को 1500 b. C. से अधिक प्राचीन सिद्ध करते हैं और बुद्ध से भी प्राचीन सिद्ध करते हैं। इस पट्टिका के आधार पर अपनी बात को पलटते हुए नवभौंदू विद्वान कहते हैं कि वैदिक लोगों या ब्राह्मणों ने ये सब देवता इन मित्तानियों से लिये थे अथवा इससे आर्य विदेशी मित्तानी सिद्ध होते हैं जो बाद में भारत आये और अपने वैदिक देवों का प्रचार करने लगे। कुछ बु

जापानी बुद्धो का पिंक पेनिश फेस्टिवल

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मित्रो .. क्षमा करे पहले तो क्यूँ की पोस्ट थोड़ी अश्लील है लेकिन जब करने वालो को अश्लील न लगे तो बताने वाला क्यूँ शर्माय .. अक्सर देखा जाता है की नवबुध हिन्दुओ के शिवलिंग की पूजा पर चुटकी लेते है ओर मजाक बनाते है लेकिन उन्ही के बुद्ध मत के जापानी अनुयायी एक त्यौहार मानते है जिसका नाम है पेनिश फेस्टिवल ,,इसमें नकली प्लास्टिक ,स्टील के बने पेनिश (लिंग ) को सार्वजनिक किया जाता है जिसमे स्त्री ,पुरुष ,बच्चे सभी भाग लेते है ..पुरुष जननांग के आकार की आइसक्रीम ओर लोलीपोप को महिलाय चुस्ती है इस तरह का काफी मजाकिया ओर अश्लील त्यौहार ये मनाते है ... यदि बुद्धिस्ट अम्बेडकर वादी हिन्दुओ की किसी परम्परा का या पूजा का मजाक बनाते है तो उन्हें उनके मत के अन्य देशो में मनाये जाने वाले ऐसे त्योहारों को देख लेना चाहिए .. अधिक जानकारी के लिए निम्न लिंक देखे :- http://www.japanese-buddhism.com/giant-pink-penis-festival.html कुछ फोटो इनके त्यौहार के : हलाकि पोस्ट कइयो के पढने लायक नही है लेकिन धर्म रक्षक जरुर इसे समझेंगे ..ओर एक बार पुन क्षमा प्रार्थी हु |