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Showing posts from March, 2023

मांग जाति से भेदभाव

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 महाराष्ट्र में कुछ जातियां जन्मना जातिव्यवस्था या अन्य कारणों से हीन मानी जाती है। उनसे भेदभाव भी होता है। हम या कोई भी निष्पक्ष अध्येता जातिवाद, छुआछूत से इनकार नहीं कर सकता है। किंतु समय - समय पर इसी समाज में अनेकों समाज सुधारकों ने जन्म लेकर इस भेदभाव के खिलाफ अभियान चलाया है।  लेकिन आजकल जातिवाद, भेदभाव और छुआछूत करने का आरोप कुछ गिनी चुनी जातियों जैसे - ब्राह्मण, राजपूत, जाट, गुर्जर, वैश्य, कुशवाहा आदि पर ही मढा जाता है। एक वर्ग विशेष आजकल जब चाहे जिसे जातिवादी होने का तमगा दे देता है। किंतु असली सच्चाई सभी से छिपाई जाती है और वह ये है कि जातिवादी व्यवस्था का फायदा, उस वर्ग ने भी खूब उठाया है जो आज खुद की गिनती सबसे शोषित जातियों में करती है।  यहां हमारा उद्देश्य किसी जाति की निंदा या किसी जाति, समाज को जातिवादी ठहराने की नहीं है। यहां हम ये बताना चाहते हैं कि पूर्व कालों में जातिवाद कुछ ही जातियों द्वारा नहीं किया गया था, लगभग सभी जातियों ने एक दूसरे के प्रति भेदभाव किया था।  अब यहां हम उस जाति की बात करते हैं, जिसकी गिनती आजकल शोषित वर्ग में होती है। किंतु एक समय था जब इसी जाति

नव बौद्धों के फर्जी अभिलेख का भांडा फोड़

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 आज हम इन नवबौद्धों के एक फर्जी प्रकाशित अभिलेख का भंडाफोड करते हैं जिसे आप यहां पर देख सकते हो। http://www.tpsgnews.com/%E0%A4%87%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8/-Copper-plate/20/2471  असल में गुप्त वंश के राजाओं के नामों को प्राकृत में बताने के लिए इन्होने एक ब्राह्मी लिपि के अभिलेख का प्रयोग किया था जिसकी लिपि गुप्त न होकर मौर्य कालीन थी। जिसे निम्न चित्र में देखें -  यहां चिह्नित अभिलेख को देखिये जिस पर वेकमादत लिखा हुआ है।  दरअसल यह अभिलेख पूरा का पूरा फर्जी है। इसे एक तथाकथित भाषा वैज्ञानिक चालुक्य विक्रमादित्य का बताता है और दूसरा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का। उनके नामों को प्राकृत भाषा का दर्शाने के लिए इस फर्जी अभिलेख का प्रयोग किया है। यहां जो वेकमादत लिखा है। वास्तव में वो नीचे दिये गये फर्जी अभिलेख से काटकर दिया है -   इसे तथाकथित भाषा वैज्ञानिक ने अपनी फेसबुक पोस्ट से भी शेयर किया था। इस अभिलेख की लिपि न तो गुप्त कालीन है और न ही चालुक्य कालीन।  साथ में यह अभिलेख किसी भी प्रभावी रिसर्च पेपर में भी प्रकाशित नहीं हुआ है। फोटों में आप देख सकते हो कि यह अभिलेख किसी

बेंट द्वारका अभिलेख पर प्रकाश व नवबौद्धों का मौर्य कालीन ब्राह्मी में निर्मित फर्जी अभिलेख का भंडाफोड़!!

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 पाठकों! कुछ कार्यों में व्यस्तता और आर्थिक स्थिति के चलते समय अनुसार पोस्ट नहीं हो पा रही है। कुछ नवबौद्धों ने द्वारिका वाले हमारे एक लेख में दिखाये अभिलेख को जाली या 14 वीं शताब्दी का बताया था। जिसका आधार वे लोग एक रिसर्च पेपर को दे रहे थे। उन लोगों के कारण सनातन प्रेमी व हमारे शुभचिन्तको में भ्रम भी फेलने लगा था। अत: स्थिति की गम्भीरता देखते हुए हम इन लोगों की धूर्तता को आप सबके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं। साथ में इनके एक फर्जी अभिलेख को भी दिखायेगें। इतना ही नहीं द्वारका अभिलेख पर हमारा लेख 100% प्रमाणिक व रिसर्च जनरलों के साक्ष्यों से है, ये भी सिद्ध करेगें।  तो आइये प्रारम्भ करते हैं -  बहुत समय पहले हमने बेंट द्वारका से प्राप्त एक अभिलेख पोस्ट किया था। जिसे एस आर राव जी ने पढा था और इसे आप निम्न लिंक पर जा कर पुन: पढ सकते हैं।  https://aproudhindubloging.blogspot.com/2021/03/archaeological-evidence-of-sanskrit.html?m=1 यहां हमने जनरल का संदर्भ भी दिया है।  अब इन लोगों ने इस अभिलेख को फर्जी या 14 वीं शताब्दी का बताना शुरु कर दिया है। जिसका आधार ये लोग एक जनरल में छपी निम्न लाईन को

बुद्ध के नारी विरोधी विचार:विस्तृत विवेचन

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  कुछ समय पहले हमने बौद्ध मत के स्त्रीनिंदक व स्त्रीविरोधी विचारों को एक लेख में लिखकर प्रकाशित किया था।यह लेख सोशल मीडिया में वायरल हो गया।  अब लज्जा के मारे कुछ नवबौद्ध कह रहे हैं कि यह तथ्य झूठे हैं, बौद्ध साहित्य में ऐसा कुछ नहीं है। पाठकों!जब बौद्ध मत को उसी के साहित्य से दर्पण दिखाया जाता है,तो नवबौद्ध ऐसे ही बहाने बनाते हैं। हम इस लेख में अपने दिये संदर्भों के प्रमाण suttacentral. com नामक बौद्ध वेबसाइट से देंगे,जो बौद्ध साहित्य की प्रामाणिक व अंतर्राष्ट्रीय स्तर की वेबसाइट है,कोई बामसेफी सड़कछाप किताब की तरह अप्रमाण नहीं है। पाठकगण हमारे आक्षेप सप्रमाण पढ़कर आनंद लें- (१) - स्त्रियाँ मार का रूप:स्त्री से कभी मत बोलो- स्त्रियां उठते,बैठते,लेटते,हंसते,बोलते,गाते व रोते समय पुरुष के को मनोग्रस्त कर देते हैं।यदि मरा हुआ भी हो तो भी स्त्रियां पुरुष को मनोग्रस्त कर देती हैं। स्त्री मार का बंधन है यानी बुरी शक्ति है। जिसके हाथ में तलवार हो,पिशाच हो,विष देने वाला हो,विष का दंश देने वाला नाग ही क्यों न हो,उससे बात कर लो। पर स्त्री से कभी मत बोलो। (अंगुत्तरनिकाय पांचवानिपात,निवारणवग्गो म

गौतम बुद्ध का अति-महिमामंडन- मल्टी-टैलेंटेड बुद्ध भाग-२

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 ।।ओ३म्।। पाठकों! पिछले भाग में हमने ललितविस्तर के प्रमाणों से देखा कि किस प्रकार गौतम बुद्ध को 'सुपर-इंटेलिजेंट' दिखानो हेतु बौद्धमत में गप्पें मारी गई हैं।अब इस लेख में हम देखेंगे कि मात्र दिमाग के नहीं, बुद्ध शारीरिक कलाओं के भी महारथी थे। बीच में कुछ-कुछ चमत्कारी वर्णन भी होंगे। पाठकगण हमारी समीक्षाओं का आनंद लेते हुये लेख पढ़ें- ∆ आकाशगामी ऋषि बुद्ध के योगबल से रुक गये- 6. उस समय पाँच ( बौद्ध धर्म से ) बाहर के ऋषि, जिन्हें पांच अभिज्ञाएँ प्राप्त थीं, जो ऋद्धिमान् थे, तथा आकाश-मार्ग से जाने का जिनमें सामर्थ्य था, वे दक्षिण दिशा से उत्तर दिशा की ओर जा रहे थे। वे जब उस वन-खण्ड के ऊपर जाने लगे तब न जा पाए, मानों उन्हें किसी ने रोक लिया हो। उनके रोंगटे खड़े हो गए और उन्होंने यह गाथा कही- वयमिह मणिवज्रकूट गिरि मेरुमभ्युद्गतं तिर्यगत्यर्थवस्तारिक, गज इव सहकारशाखाकुलां शमशाला वृक्षवृन्दां प्रदारित्व निर्धावितानेकशः। उप ( वयमिह मरुणां पुरे चाप्यसक्ता गता यक्षगन्धर्ववेश्मानि चोध्वं नभे निश्रिता. इम पुन वनखण्डमासाद्य सोदाम भोः कस्य लक्ष्मी निवर्तेति ऋद्धर्बलं ॥इति।।307॥ हम यहाँ पर ति

गौतम बुद्ध का अति-महिमामंडन- सुपर-इंटेलिजेंट बुद्ध,भाग-१

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 ( हिंदू देवी-देवताओं को बुद्ध से बौना दिखाना) ।।ओ३म्।। पाठकों! नवबौद्ध हमेशा कहते हैं कि उनके मत में कोई पाखंड नहीं है।कई जन जैसा कि डॉ अंबेडकर, सुरेंद्रकुमार अज्ञात, राकेश नाथ आदि कृष्ण जी के गीता के 'आत्मपरक' श्लोकों के आधार पर कृष्ण जी को आत्मप्रचारक कहते हैं। परंतु गौतम बुद्ध की हर लिखित पुरानी जीवनी में उनको बहुत बड़ा महात्मा,महान् विद्वान, महान् चमत्कारी यहाँ तक के ईश्वर का भी दादागुरु बना दिया है! इस विषय पर और लेख आयेंगे, फिलहाल इस लेख में चर्चा करेंगे कि कैसे हिंदू देवी-देवताओं की निंदा करते हुये बुद्ध का महिमामंडन किया गया। बुद्ध की जीवनी,जिसके अनुसार डॉ अंबेडकर 'बुद्ध और उनका धम्म' लिखते हैं, उस ललितविस्तर में लिखा है- ∆ बुद्ध से देवता भी काँपते हैं- जातस्य मह्यमिह कम्पित त्रिंसहस्रं शक्रश्च ब्रह्म असुराश्च महोरगाश्च । चन्द्रश्च सूर्य तथ वैश्रवण कुमारो मूर्ना क्रमेषु निपतित्व नमस्ययन्ति ।।287।। यहाँ मेरे जन्मते त्रिसाहस्र-लोकधातु काँप उठे थे। इन्द्र, ब्रह्मा, असुरगण,महानाग-गण, चन्द्र, सूर्य, कुबेर, तथा कार्तिकेय ने चरणों में गिर कर शिर से (मुझे) नमस्कार किया

अशोक के काल में यज्ञ, संस्कृत भाषा और वेदों की सिद्धि

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 नवबौद्धों को बस शिलालेख से आगे कुछ दिखता ही नहीं है शायद अब भी उनका हठ इतना आडे आएगा कि वे इस शिलालेख पर भी कुतर्क या कहानियाँ बनाने से पीछे नहीं हठेंगे। प्रस्तुत दोनों चित्र "सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार" द्वारा प्रकाशित पुस्तक "अशोक के धर्मलेख" से है। इस पुस्तक में अशोक के शिलालेखों के अनुवाद योग्य एवं प्रमाणिक विद्वानों द्वारा किए गए हैं। इसमें से प्रथम चित्र अशोक के कालसी चट्टान का है जिसमें अशोक लिखता है कि - "मेरे राज्य में कोई भी जीव मार कर होम न करें" अब देखे कि होम का उल्लेख यहाँ स्पष्ट है और होम बिना मन्त्रों के नहीं होता है "यज्ञकर्मण्यजपन्यूङ्खसामसु"- अष्टाध्यायी 1.2.34  अब कई लोग कहेंगे कि इस तरह तो आप यज्ञ में जीव हत्या वैदिक सिद्ध कर रहें है लेकिन ऐसा नहीं है यहां केवल यज्ञ होना दिखाना है, यज्ञ विधि वेदानुकूल - प्रतिकूल है या नहीं ये दिखाना नहीं है। हमारा मानना है कि आरम्भ में यज्ञ हिंसामय नहीं थे बल्कि बाद में अज्ञान और लोभ के कारण हुए। अशोक का भी मानना है कि अतीत काल में हिंसा नहीं होती थी इसका प्रमाण अशोक का शिलालेख है

बौद्ध स्तूप से यज्ञ का प्रमाण 2

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 हमने पहले भी बौद्ध स्तूप से वैदिक यज्ञ का प्रमाण दिया था जो कि कश्यप जाटिल कथा से सम्बंधित था। अब पुनः इस नई पोस्ट में हम बौद्ध स्तूप तथा स्तूप पर बने फलक से सम्बंधित जातक कथा के तुलनात्मक अध्ययन से यज्ञ का प्रमाण देगें। यहां स्तूप फलक का प्रमाण इसलिए दिया जायेगा कि नवबौद्ध इस जातक कथा की प्रमाणिकता पर संदेह या सवाल न कर सकें।  तो वो जातक है सुत्तपिटक के खुद्दकनिकायपालि में जातकपालि 2 के महानिपातो 22 के जातक क्रमांक 547, महावेस्सन्तर जातक से - इस जातक में बुद्ध पूर्वजन्म में वेस्सन्तर नामक राजा हुआ करते थे। जो कि दानशीलता के लिए अत्यंत प्रसिद्ध थे। हम यहां सम्पूर्ण जातक कथा तो नहीं लिख सकते हैं किंतु इस जातक में आये अग्निहोत्र, यज्ञ के प्रमाणों को उद्धृत करते हैं - (1) वेस्सन्तर को यजमान अर्थात् यज्ञ करके दान देने वाला कहा है -  - जातक (षष्ठ खंड), पृष्ठ क्र. 546  इसको आप मूल पालि में भी देख सकते हैं -   - दानकण्णवण्णना, 22 महानिपातो, जातक अट्ठकथा 7, खुद्दकनिकाय (अट्ठकथा), सुत्तपिटक (अट्ठकथा)  यहां वेस्सन्तर को यजमान कहा गया है। अर्थात् यज्ञ करके दान करने वाला राजा।  (2) वेस्सन्तर को अ